28 अक्टूबर 2022 को भारत के पूर्वी राज्य बिहार के पालीगंज विधानसभा चुनाव के दौरान पोलिंग स्टेशन पर सामाजिक दूरी बनाये खड़े मतदाता. भारत में अप्रैल और मई 2021 में पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं. (AP/ आफ़ताब आलम सिद्दीक़ी)

भारतीय राज्य विधानसभा चुनाव 2021: पत्रकार सुरक्षा गाईड

भारत में मार्च, अप्रैल और मई 2021 में असम, केरल , तमिलनाडु, बंगाल और पुडुचेरी राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. 

वह पत्रकार जो इन चुनावों पर रिपोर्टिंग करने जा रहे हैं उन्हें, शारीरिक हमलों, डराने की कोशिश, उत्पीड़न; इंटरनेट पर डराना, कोविड-19 संक्रमण, गिरफ़्तारी, नज़रबंदी, रिपोर्टिंग पर सरकारी प्रतिबंध, इंटरनेट पर रोक, इत्यादि रुकावटों और ख़तरों की जानकारी होनी चाहिए. CPJ  की जानकारी के अनुसार साल 2020 में ही दो पत्रकारों को अपने काम के कारण जान गवानी पड़ी थी.

सहानिया के के, जोकि केरल की एक न्यूज़ वेबसाइट ‘द फ़ेडरल’ में सह एडिटर हैं, ने  CPJ से फ़ोन पर बात करते हुए बताया कि, “अकसर, सम्पादक और ब्यूरो चीफ़ पत्रकारों से ज़मीनी ख़तरों के बारे में बात नहीं करते हैं. हमारे पास ऐसी परिस्थितियों का अंदाज़ा लगाने और उनसे निपटने के लिए के लिए कोई तंत्र या व्यवस्था नहीं है. पत्रकारों को बस अपना काम करने के लिए छोड़ दिया जाता है.”

CPJ  एमर्जेन्सीज़ ने चुनाव के दौरान काम करने वाले पत्रकारों के लिए अपनी सुरक्षा गाइड में बदलाव किए हैं. इसमें सम्पादकों, पत्रकारों और फ़ोटोजर्नलिस्ट्स के लिए विधानसभा चुनावों से जुड़ी तैयारी व डिजिटल, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों से निपटने के लिए दिशानिर्देश दिए गए हैं.

चुनाव सुरक्षा गाइड की पीडीएफ हिंदी में डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध है.

संपर्क एवं संसाधन

मदद  के लिए पत्रकार CPJ एमर्जेन्सीज़ में [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं. इसके अलावा CPJ के एशिया प्रोग्राम में वरिष्ठ शोधकर्ता  आलिया इफ़्तेख़ार से [email protected] अथवा भारत संवाददाता कुणाल मजूमदार से [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है. 

इसके अलावा, CPJ  के संसाधन केन्द्र से असाइनमेंट पर जाने से पहले की तैयारी और किसी घटना के बाद सहायता से जुड़ी और अधिक  जानकारी प्राप्त की जा सकती है.

14 फ़रवरी 2017 को नई दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के बाहर कार्य करते पत्रकार. (AP/अल्ताफ़ क़ादरी)

सम्पादक सुरक्षा सूची

विधान सभा चुनाव से पहले, चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद, सम्पादक एवं न्यूज़रूम पत्रकार को काम समय के नोटिस पर ख़बरें करने के लिए भेज सकते हैं. इस सूची में कुछ ऐसे सवाल और सूचनाएं हैं जिनसे पत्रकार काम से जुड़े जोखिम को कम कर सकते हैं.

रिपोर्टर  चुनते समय ध्यान में रखें

  • क्या रिपोर्टर के पास इस काम से जुड़ा ज़रूरी अनुभव है?
  • क्या चुने हुए रिपोर्टर कोविड-19 जोखिम श्रेणी में आते हैं, या फिर क्या उनके परिवार में ऐसे लोग हैं जो उन पर आश्रित हैं?
  • क्या एक संभावित जोखिम भरी जगह (जैसे कि, चुनाव रैली) पर पत्रकार अपने लिंग, धर्म, या जातीयता की वजह से आसान निशाना बन सकते हैं?
  • क्या पत्रकार यह काम करने के लिए शारीरिक रूप से योग्य हैं, और क्या आपने रिपोर्टिंग के दौरान संभावित स्वास्थ से जुड़ी समस्याओं के बारे में उनसे बात की है?

क्या किसी एक ख़ास भूमिका में काम करना रिपोर्टर को ज़्यादा जोखिम की स्तिथि में दाल सकता है? उदाहरण के लिए, फ़ोटोजर्नलिस्ट अक्सर कार्रवाई के अधिक निकट होते हैं.

उपकरण और यातायात

  • क्या आपने चुने हुए पत्रकार से फ़ील्ड में कोविड-19 होने के जोखिम  के बारे में बात की है, और क्या आपने उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाला मास्क एवं हैंड सैनिटाइज़र मुहैया कराया है? 
  • अगर वह ऐसे प्रदर्शन में जा रहे हैं जहां हिंसा होने की संभावना है, तो क्या आपने उन्हें बचाव के सही उपकरण जैसे कि, हेलमेट, सुरक्षा चश्मे, शारीरिक कवच, आंसू  गैस वाला नकाब और चिकित्सा किट मुहैया कराए हैं? 
  • क्या रिपोर्टर स्वयं गाड़ी चला कर जाने वाले हैं, और क्या यह वाहन सही स्तिथि में है? 
  • क्या आपने अपनी टीम से संचालन के माध्यमों और आपातकाल के स्थिति में बच कर निकलने के तरीकों के बारे में बात की है?

कुछ ध्यान में रखने वाली बातें

  • क्या आपने फ़ील्ड में जाने वाले सभी स्टाफ़ की संपर्क करने से जुड़ी जानकारियां सुरक्षित राखी हैं? 
  • क्या आपके कर्मचारियों के पास सही पहचान पत्र, या ऐसे दस्तावेज़ हैं जिनसे यह सिद्ध हो सके कि वह आपकी संस्था के साथ काम करते हैं ? 
  • क्या आपकी टीम के पास सही बीमा है, या क्या उनका ठीक मेडिकल कवर किया गया है? 
  • क्या आप स्थानीय चिकित्सा व्यवस्था से अवगत हैं, और क्या आपने अपने कर्मचारियों को इसकी जानकारी प्रदान की है? 
  • क्या आपने अपने कर्मचारियों से काम के दौरान होने वाली मानसिक क्षति और असर के बारे में बात की है?

जोखिम के आंकलन और उससे जुड़ी तैयारी से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए CPJ रिसोर्स सेंटर पर जाएं.

6 नवम्बर 2017 को मुंबई में लिए गए इस फ़ोटोग्राफ़ में, एक यूजर अपने मोबाइल पर फेसबुक के WhatsApp एप्लीकेशन को अपडेट करते हुए. (AFP/इंदरनील मुखर्जी)

डिजिटल सुरक्षा: उपकरणों से जुड़ी मूल तैयारी

चुनाव के दौरान यह स्वाभाविक है कि पत्रकार रिपोर्टिंग, कहानी लिखने एवं अपने सहकर्मियों और सूत्रों से बात करने के लिए अपने मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करें. अगर पत्रकार गिरफ़्तार हो जाते हैं या उनका फ़ोन टूट जाता है, तो ऐसी स्तिथि डिजिटल सुरक्षा का सवाल उठता है. ऐसे  में रिपोर्टिंग करने जाने से पहले ध्यान में रखने की कुछ बातें:

  • इस बात का ध्यान रखें कि आपके मोबाइल और कंप्यूटर पर किस तरह की जानकारी है. अगर आपकी गिरफ़्तारी होती है और आपके उपकरणों की जांच की जाती है तो क्या आप और आपके जानने वालों को इससे जोखिम हो सकता है? 
  • रिपोर्टिंग पर जाने से पहले एक हार्ड ड्राइव पर अपने फ़ोन डाटा का बैकअप अवष्य करें.  निजी एवं संवेदनशील डाटा जैसे कि, परिवार की तस्वीरों को अपने फ़ोन से हटा दें या फिर छुपा दें.
  • उन ऐप्स से सवयं को लॉग आउट कर दें और उन्हें अपने फ़ोन से हटा दें जिनका आप रिपोर्टिंग के समय इस्तेमाल नहीं करेंगे. अपने फ़ोन के ब्राउज़र से भी लॉग आउट कर दें एवं सर्च हिस्ट्री को भी हटा दें. इससे आप अपने एकाउंट्स को जांच के समय बेहतर सुरक्षित रख सकते हैं.
  • अपने सभी उपकरणों को पासवर्ड द्वारा सुरक्षित कर लें. इसके अलावा रिपोर्टिंग पर जाने से पहले अपने उपकरणों को ‘रिमोट वाइप’ पर डाल दें. याद रखें कि रिमोट वाइप इंटरनेट कनेक्शन होने पर ही काम करता है. अपने फ़ोन के लॉक को ऊँगली के निशान से खुलने वाली सेटिंग से हटा दें, ऐसा न करने पर गिरफ़्तारी के समय आपके फ़ोन को आसानी से खोला जा सकता है.
  • अपने साथ कम से कम उपकरण ले जाएं. यदि आपके पास कोई अतिरिक्त फ़ोन है तो उसका इस्तेमाल अपने निजी फ़ोन की जगह करें.
  • यदि आप एंड्राइड फ़ोन का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसका एन्क्रिप्शन अवश्य चालू कर लें. नए iPhone में पहले से ही यह सुविधा उपलब्ध होती है. इसके अलावा एन्क्रिप्शन से जुड़े कानून के बारे में जानकारी इखट्टा कर लें.
  • जहाँ तक हो सके, अपने सूत्रों और सहकर्मियों से ‘सिग्नल’ जैसी एन्ड-टू-एन्ड एन्क्रिप्शन वाली मैसेज सेवाओं का उपयोग करें. इन सेवाओं में कुछ समय बाद अपने आप मैसेज निष्क्रिय होने वाली सेटिंग का प्रयोग करें.
  • किसी वेबसाइट के ब्लॉक हो जाने की स्थिति में VPN सेवा का इस्तेमाल करें. इसे आप अपने फ़ोन पर इनस्टॉल कर सकते हैं. VPN सेवा से जुड़े कानूनों के बारें पढ़ लें एवं यह भी जांच लें कि इंटरनेट सेवा बंद होने की स्तिथि में कैसी VPN सेवा सबसे बेहतर काम करती है.
  • इंटरनेट सेवा पूरी तरह बंद हो जाने की स्थिति में यह सुनिश्चित कर लें कि आप लोगों से संपर्क कैसे और कब बनाएंगे.
  • CPJ  के इंटरव्यूज़ और सिटिज़न लैब के एक शोध के अनुसार, भारत में पेगासिस जैसे स्पाईवेयर अभियान के ज़रिये वर्तमान में पत्रकारों पर हमले हो चुके हैं. मोबाइल फ़ोन पर एक बार इनस्टॉल होने के बाद यह स्पाईवेयर आपकी सभी हरकतों पर नज़र रखता है. [इजराइल स्तिथ NSO ग्रुप ने CPJ को बताया है कि वह पेगासिस का प्रचार सरकारों को कानून व्यवस्था से जुड़ी गतिविधियों पर केवल नज़र रखने के लिए करता है. NSO ग्रुप का यह भी दवा है कि वह अपने सॉफ्टवेयर को लेकर अनुबंध के उल्लंघन के मामलों की जांच भी करते हैं.]

डिजिटल सुरक्षा पर और अधिक जानकारी के लिए CPJ की डिजिटल सुरक्षा गाइड को पढ़ें.

डिजिटल सुरक्षा: सामग्री की सुरक्षा एवं संचयन

चुनाव के दौरान काम से जुड़ी सामग्री की सुरक्षा और संचयन पर संलेख होना महत्वपूर्ण है. यदि कोई पत्रकार गिरफ़्तार कर लिए जाते हैं, और उनके उपकरणों की जाँच होती है, तो ऐसी स्तिथि में पत्रकार और उनके सूत्रों के लिए गंभीर स्तिथि पैदा हो सकती है. चुनाव के दौरान रिपोर्टिंग करते समय उपकरण को क्षति पहुँचने या खो जाने का ख़तरा बना रहता है. ऐसे में डाटा बैकअप न होने पर पत्रकार द्वारा इकट्ठा की गई महत्वपूर्ण जानकारी खो सकती है.

स्वयं और इकट्ठा की गई जानकारी की सुरक्षा करने के तरीके

  • अपने उपकरणों जैसे कि मोबाइल फ़ोन, कंप्यूटर इत्यादि पर किस तरह की जानकारी है, इसकी समीक्षा कर लें. कोई भी ऐसी जानकारी जो आपको ख़तरे  में डाल सकती है या जो संवेदनशील है, उसे बैकअप  कर अपने उपकरण से हटा दें. ऐसे तरीके मौजूद हैं जिनसे उपकरण से हटाई हुई जानकारी दोबारा प्राप्त की जा सकती है. यदि कोई ऐसी जानकारी आपकी पास है जो अति-संवेदनशील है, उसे सिर्फ़ डिलीट करने के बजाए कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर के माध्यम से हमेशा के लिए अपने उपकरण से हटा दें.
  • अपने स्मार्टफ़ोन की समीक्षा करते समाय, फ़ोन (हार्डवेयर) के साथ-साथ क्लाउड (Google Photos, iCloud) में राखी जानकारी की भी जांच करें.
  • अपने फ़ोन की मैसेजिंग ऐप जैसे WhatsApp में राखी जानकारी की समीक्षा करें. कोई भी ऐसी जानकारी जिससे पत्रकारों को ख़तरा हो सकता है, उसे उन्हें हटा देना चाहिए. यह ध्यान रखें कि WhatsApp आपके उपकरण से जुड़े क्लाउड जैसे कि, iCloud या Google Drive में अपने-आप आपकी बातों का बैकअप बना लेता है.
  • इस बारे में विचार करें कि आप अपना बैकअप कहाँ रखेंगे? आप बैकअप, क्लाउड, हार्ड ड्राइव या फिर पेनड्राइव में कर सकते हैं.
  • पत्रकार को नियमित रूप से अपने काम से जुड़ी सामग्री को उपकरणों से हटाकर बैकअप लेना चाहिए.  इससे यह फ़ायदा है कि उपकरण ज़प्त या चोरी होने पर आपके पास साड़ी जानकारी सुरक्षित रहती है.
  • बैकअप  की गई कोई भी जानकारी को इन्क्रिप्ट करना बेहतर होता है. आप ऐसा अपनी बाहरी हार्ड ड्राइव या पेन ड्राइव को एन्क्रिप्ट करके कर सकते हैं. आप अपने उपकरणों में भी एन्क्रिप्शन चालु कर सकते हैं. पत्रकार जिस देश में काम कर रहे हैं, उन्हें एन्क्रिप्शन से जुड़े कानूनों के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए.
  • अगर आपको ऐसा लगता है कि कोई आपके उपकरण जैसे कि हार्ड ड्राइव या पेन ड्राइव को चुराने की कोशिश कर सकता है तो उन्हें अपने घर के अलावा कहीं और संभाल के रखें. 
  • अपने सभी उपकरणों पर पिन लॉक ज़रूर लगाएं. आपका पिन लॉक जितना लम्बा होगा उसे तोड़ पाना उतना ही कठिन होगा. 
  • अपने मोबाइल एवं कंप्यूटर पर रिमोट वाइप पहले से ही लगा कर रखें. इससे आपातकालीन स्तिथि में, जैसे कि पुलिस द्वारा उपकरण ज़प्त होने, पर आप दूर से ही संवेदनशील जानकारी को हटा सकते हैं. लेकिन याद रहे, यह सुविधा आप तभी इस्तेमाल कर सकते हैं, जब आपका उपकरण इंटरनेट से जुड़ा हुआ हो. 

डिजिटल सुरक्षा: सकुशल संचार के तरीके

सुरक्षित तरीके से संवाद आपकी डिजिटल सुरक्षा का एक अहम् हिस्सा है. कोविड-19 के चलते क्योंकि ज़्यादातर पत्रकार किसी एक जगह से काम नहीं कर रहे हैं, ऐसे समय में यह और ज़रूरी हो जाता है. पत्रकार और सम्पादक मिलने के बजाए, वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग कर रहे हैं. ऐसे में यह सुनिश्चित करना कि इन मीटिंग्स को कोई और आसानी से देख न पाए, कर्मचारियों और सूत्रों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी हो जाता है.

  • यह सुनिश्चित करें कि आपका अकाउंट एक अनोखे पासवर्ड द्वारा सुरक्षित है. इसके अलावा एवं टू-स्टेप वेरिफ़िकेशन का हमेशा प्रयोग करें.
  • अगर हो सके तो कॉन्फ्रेंस के लिए अपने निजी ई-मेल की जगह व्यावसायिक ई-मेल का प्रयोग करें. इससे आप अपना निजी डाटा जैसे कि अपनी संपर्क सूची को कॉन्फ्रेंस में मौजूद दूसरे लोगों और कॉन्फ्रेंस प्लेटफॉर्म से सुरक्षित रख सकते हैं.
  • कॉन्फरेंस से जुड़ी कोई भी जानकारी को सोशल मीडिया पर ना डालें. ऐसा तभी करें जब कॉन्फ्रेंस सार्वजनिक हो और आप भाग लेने वालों को नियंत्रित नहीं करना चाहते हों.
  • यह सुनिश्चित कर लें कि आप कॉन्फ्रेंस प्लेटफॉर्म सेवा का सबसे नए संस्करण इस्तेमाल कर रहे हैं.
  • यदि आपको 10 या उससे कम लोगों से वीडियो पर बात करनी है तो WhatsApp या सिग्नल का इस्तेमाल करें.

ज़ूम का प्रयोग करते समय:

ज़ूम का प्रयोग करते समय, स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए इन बातों का ध्यान रखें:

  • ज़ूम वीडियो कॉल पर आने वाले हर एक व्यक्ति के लिए ख़ास आईडी बनता है, इसे सार्वजनिक न करें. उदाहरण के लिए, इस आईडी को सोशल मीडिया पर ना डालें.
  • मीटिंग में प्रवेश करने के लिए एक पासवर्ड बनाएं.
  • ज़ूम पर ‘वेटिंग रूम’ विकल्प को चुनें. इससे आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि केवल बुलाए गए लोग ही आपकी मीटिंग में प्रवेश कर पाएं. इस विकल्प से आप यह देख पाएंगे कि कौन ‘वेटिंग रूम’ में है और बिन बुलाए लोगों को आसानी से हटा पाएंगे.
  • एक बार सभी आमंत्रित लोगों के आने पर अपने मीटिंग रूम को लॉक करना न भूलें.
  • आप मीटिंग को नियंत्रित कर सकते हैं, जिसमें वीडियो बंद/चालू करना, आवाज़ बंद/चालू करना शामिल हैं. इसके अलावा आप यह भी नियंत्रित कर सकते हैं कि किसकी स्क्रीन बाकि लोग देख सकते हैं.
  • आप ज़ूम कॉल  के दौरान किसी को भी मीटिंग से बाहर निकल सकते हैं और उनके मीटिंग में दोबारा शामिल होने पर प्रतिबंध भी लगा सकते हैं.
  • मीटिंग से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि सभी आमंत्रित लोगों के पास ज़ूम का सबसे नया संस्करण है एवं वह एन्ड-टू-एन्ड एन्क्रिप्शन का प्रयोग कर रहे है

डिजिटल सुरक्षा: ऑनलाइन उत्पीड़न, ट्रोलिंग, एवं ग़लत सूचना अभियान

चुनाव के दौरान नियोजित ऑनलाइन अभियान के साथ ऑनलाइन उत्पीड़न में वृद्धि हो सकती है. ऑनलाइन आक्रांताओं द्वारा मीडिया कर्मियों अक्सर निशाना बनाया जाता है ताकि पत्रकारों और उनके कार्य को बदनाम किया जा सके. अक्सर समन्वित उत्पीड़न तथा गलत सूचना अभियान का सहारा लिया जाता है ताकि पत्रकार सोशल मीडिया का प्रयोग न कर पाएं. इस तरह उन्हें ऑफ़ लाइन की ओर धकेल दिया जाता है. CPJ को कई ऐसे मामलों का ज्ञान है जिसमें इसी तरह कई महिला पत्रकारों को ऑनलाइन ट्रोल किए गया या इस तरह ऑनलाइन उत्पीड़न किए गया. ऑनलाइन हमलों से सुरक्षा आसान नहीं है इसलिए पत्रकार कुछ नियमों का पालन कर अपनी और अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स की बेहतर सुरक्षा कर सकते हैं. 

बेहतर सुरक्षा हेतु उपाय:

सोशल मीडिया अकाउंट की सुरक्षा

ऑनलाइन उत्पीड़क आपके सोशल मीडिया अकाउंट से व्यक्तिगत जानकारी हासिल कर निशाना बना सकते हैं और उत्पीड़न कर सकते हैं अतः अपने खाते और उसके डाटा की सुरक्षा हेतु निम्न्लिखित कदम उठाएं:

  • अपने अकाउंट का लम्बा और मज़बूत पासवर्ड बनाएं जिसमें 16 या अधिक अक्षर हों. तथा प्रत्येक खाते के लिए यह पासवर्ड अद्वितीय होना चाहिए. ऐसा करने के लिए ‘पासवर्ड मैनेजर’ का उपयोग करें जोकि वर्तमान में पासवर्ड बनाने का सबसे सुरक्षित तरीका है. ऐसा करने पर पासवर्ड हैक होने से बचा जा सकता है.
  • खातों में दो-फैक्टर प्रमाणीकरण (2FA) का इस्तेमाल करें.
  • अपने प्रत्येक खाते की प्रिवेसी सेटिंग की समीक्षा करें और यह सुनिश्चित करें कि अपनी निजी जानकारियां जैसेकि फ़ोन नंबर, जन्मतिथि, इत्यादि हटा दी गयीं हैं. इस बात की भी जांच करें कि सोशल मीडिया पर आपकी व्यक्तिगत जानकारी तक किन लोगों की पहुच है और अपनी प्राइवेसी सेटिंग को अधिक कड़ा करें.
  • अपने अकाउंट्स की जांच करें और ऐसी तस्वीरों को हटा दें जिनमें हेरा-फेरी कर आपको बदनाम किए जा सकता है. ट्रोल्स द्वारा इस तकनीक का अक्सर प्रयोग किया जाता है.
  • अपने सोशल मीडिया खातों पर बढ़ती ट्रोलिंग गतिविधि पर निरंतर निगाह रखें और ऑनलाइन ख़तरों के शारीरिक ख़तरों में बदलने के संकेतों पर भी ध्यान दें. इस बात का ध्यान रखें की कुछ कहानियां लिखने पर उत्पीड़न का स्तर और अधिक बढ़ सकता है.
  • ऑनलाइन उत्पीड़न के बारे में अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों से चर्चा करें. सामान्यतः ट्रोल्स सोशल मीडिया के माध्यम से पत्रकारों के पत्रकारों के परिजनों और सामाजिक सर्किल के बारे में जानकारी हासिल कर लेते हैं. अपने लोगों से आग्रह करें कि वे अपनी साइट से आपकी तस्वीरें हटा दें या फिर अपना अकाउंट लॉक कर लें.
  • अपने मीडिया आउटलेट से ऑनलाइन उत्पीड़न के बारे में बात करें. तथा उत्पीड़न गंभीर होने की दशा में की जाने वाली कार्यवाही की योजना तैयार रखें.

हमले की स्थिति में क्या करें:

  • ऑनलाइन उत्पीड़क के साथ उलझें नहीं अन्यथा स्तिथि और बिगड़ सकती है.
  • यह जानने की कोशिश करें कि हमले के पीछे कौन लोग हैं और उनकी मंशा क्या है? हो सकता है हमले के पीछे वजह आपके द्वारा की गयी कोई कहानी हो.
  • पत्रकार को सोशल मीडिया कंपनी को उसके साथ हुए अपमानजनक व्यवहार और हमले की तुरंत जानकारी देनी चाहिए.
  • कोई भी कमेंट या तस्वीर जिसके ज़रिये आप पर हमला हुआ है, उसकी जानकारी अपने पास रखें. यह आप स्क्रीनशॉट ले कर, हमले का समय दिनांक और ट्रोल का सोशल मीडिया हैंडल अपने पास सुरक्षित रख लें. यह सूचनाएं बाद में महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं यदि यह आप अपनी मीडिया कंपनी, सम्पादक, या किसी अन्य संगठन को दिखाना चाहते हैं जो आपकी अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा करता हो.
  • हैकिंग के संकेतों से सावधान रहें. यह सुनिश्चित करें कि आपके सोशल मीडिया खतों का पासवर्ड मज़बूत और लम्बा हो, तथा आप 2FA का उपयोग कर रहे हों.
  • ऑनलाइन उत्पीड़न की सूचना अपने परिवारजनों, सहकर्मियों को दें. उत्पीड़क प्रायः आपके परिवार और आपके कार्यस्थल से संपर्क करने का प्रयास करते हैं और आपकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने के लिए तसवीरें एवं  दूसरी जानकारी भेजते हैं.
  • उत्पीड़न करने वालों को आप ब्लॉक या म्यूट कर सकते हैं.
  • आपको सोशल मीडिया कंपनी को अपमानजनक संदेशों की जानकारी चाहिए और इस  मामले में कंपनी के साथ हुए संवाद का ब्यौरा रखना चाहिए.
  • अपने सोशल मीडिया अकाउंट की समीक्षा करें और ऐसे कमेंट्स का पता लगाएँ जो यह इंगित करते हैं कि ऑनलाइन धमकी शारीरिक हमले में बदल सकती है.
  • इसमें लोगों द्वारा आपके घर के पते को ऑनलाइन पोस्ट किया जा सकता है. इसे ‘डोक्सिंग’ के नाम से जाना जाता है. शारीरिक खतरे में लोगों को आप पर हमला करने के लिए उकसाना और किसी व्यक्ति विशेष द्वारा अधिक उत्पीड़न करना शामिल हैं.
  • उत्पीड़न समाप्त होने तक ऑफलाइन रहें.
  • ऑनलाइन उत्पीड़न अकेलेपन से भरा अनुभव हो सकता है. इस बात का ध्यान रखें कि ऐसे समय में आपके पास सहयोग के लिए नेटवर्क हो जो आपकी मदद कर सके. इस मामले में आपका नियोक्ता आपका सबसे बड़ा सहयोगी हो सकता है.
अधिकारियों द्वारा कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए लगाए गए प्रतिबंधों में ढील देने के उपरांत दिनांक 12 जून 2020 को पत्रकार बरखा दत्त (बीच में) गुरु तेगबहादुर अस्पताल, नई दिल्ली से रिपोर्ट करते हुए. (AFP/प्रकाश सिंह)

 शारीरिक सुरक्षा: कोविड-19 के सन्दर्भ में

चुनाव के दौरान या सम्बंधित विरोध प्रदर्शन के दौरान शारीरिक दूरी बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता है. आम इलाके भीड़-भरे होते हैं, जहाँ संभवतः ही आम जनता अपने चेहरे को नहीं ढक रहे  होते हैं या फेसमास्क नहीं लगाए हुए होते हैं. ऐसे में संभव है कि मीडियाकर्मी दूसरे पत्रकारों से बहुत काम दूरी पर काम कर रहे हों.  कम दूरी के कारण मीडियाकर्मी वायरस का शिकार हो सकते हैं, इसके अलावा कुछ हमलावर जबरन बोल कर या खांस कर आपके ऊपर शारीरिक हमला कर सकते हैं.

ध्यान दें रैली में चिल्लाते और नारे लगते हुए लोग वायरस की बूदें फैला सकते हैं, जिससे मीडियकर्मियों में कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है.

  • भारत में हर राज्य में कोविड-19 को ले कर सार्वजनिक प्रतिबंध अलग-अलग हैं. इसमें बिना किसी पूर्व-सूचना के या बहुत कम समय की सूचना पर बदलाव किये जा सकते हैं. रिपोर्टिंग पर जाने से पहले यह सुनिश्चित करें कि किस तरह के प्रतिबंध लगे हुए हैं. यह देखा गया है कि 2020 के दौरान अनेक पत्रकारों पर इस हमले किए गए और पुलिस द्वारा प्रतिबंध की अवहेलना के नाम पर पत्रकारों को हिरासत में लिया गया. 
  • यदि आप आप विदेश यात्रा कर रहे हैं या चुनावी खबरों के लिए एक राज्य से दुसरे राज्य की यात्रा कर रहे हैं तो आपको हाल ही में किये गए कोविड-19 टेस्ट की रिपोर्ट प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत करनी पड़ सकती है, या आगमन  पर आपको क्वारंटाइन किया जा सकता है. राज्यों के हिसाब से काम आने वाली गाइड को आप यहाँ देख सकते हैं.
  • किसी भी भीड़-भाड़ वाले इलाके या प्रदर्शन स्थल पर अच्छी गुणवत्ता वाले मास्क का उपयोग आवश्यक है (N95 / FFP2 वाली या ज़्यादा गुणवत्ता). याद रखें कि मास्क नहीं पहनने पर आपको अर्थदंड देने को कहा जा सकता है.
  • अपने कार्य के दौरान जहाँ तक संभव हो, नियमित तौर पर सही तरीके से अपने हाथ धोते रहें. यह भी सुनिश्चित करें कि आपके हाथ उचित तरीके से सुखा लिए गए हैं. यदि आप बार-बार अपने हाथ नहीं धो सकते हैं तो अलकोहल-बेस्ड हैंड सैनीटाईज़र का उपयोग करें, लेकिन इसे नियमित रूप से हाथ धोने का विकल्प नहीं बनाएं.
  • काम से लौटने पर अपने माकन में प्रवेश करने से पहले सभी कपड़े एवं जूते उतारें. जहाँ तक संभव हो, कपड़ों को गरम पानी और साबुन से साफ़ करें.
  • अपना कार्य पूरा हो जाने पर अपने उपकरणों को अच्छी तरह से साफ़ करें.

कोविड-19 रिपोर्टिंग दिशानिर्देशों के लिए CPJ सुरक्षा सलाह को यहाँ देखें

12 फ़रवरी 2021 को कोलकाता में लेफ्ट पार्टी विद्यार्थिओं द्वारा किये गए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस दमन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते कांग्रेस पार्टी समर्थक. (AP/बिकास दास)

शारीरिक सुरक्षा: चुनाव रैलियों और प्रदर्शनों से रिपोर्टिंग

चुनाव के दौरान मीडिया कर्मियों को अक्सर भीड़-भाड़ वाली रैलियों, प्रचार अभियान, लाइव ब्रॉडकास्ट और प्रदर्शनों से काम करना होता है.

ऐसी जगहों से काम करने समय स्वयं की सुरक्षा हेतु मीडियाकर्मी इस बातों का ध्यान रखें:

राजनीतिक आयोजन एवं रैलियां

  • कृपया सुनिश्चित करें कि आपके पास उचित प्रेस-पहचान पत्र एवं मान्यता हो. फ्रीलांसर्स के पास कमीशनिंग नियोक्ता द्वारा पत्र ऐसे में मददगार होगा. इस पत्र को प्रदर्शित करें यदि ऐसा करना सुरक्षित हो. पहचान पत्र की डोरी को गले में डालने के बजाए अपने बेल्ट के साथ बाँध लें, या अपने हाथ के ऊपरी हिस्से पर पारदर्शी वेल्क्रो पाउच में बांध लें.
  • अपनी मीडिया कंपनी की ब्रांडिंग वाले कपड़े न पहनें. अपने उपकरणों और वाहनों से अपनी मीडिया कंपनी के चिन्ह हटा दें.
  • सैंडल एवं फिसलने वाले जूते नहीं पहनें. इनकी जगह कड़क तले वाले मज़बूत जूते पहनें जोकि आपके टख़नों को सहारा दे सकें.
  • अपने वाहन को सुरक्षित स्थान पर खड़ा करें ताकि आवश्यकता पड़ने पर बच निकल सकें और वाहन का अगला हिस्सा निकलने के मार्ग की दिशा में रखें.
  • परिस्तिथि बिगड़ने की स्तिथि में बच कर निकलने की रणनीति बना कर रखें. यह आप लोकेशन पर पहुंचे के बाद कर सकते हैं, पर कोशिश करें कि इसकी तैयारी पहले से कर के रखें. अपनी लोकेशन से बाहर निकलने के सभी रास्तों को पहचान लें.
  • भीड़ का मूड भाँपने का प्रयास करें. यदि संभव हो तो उसी स्थान पर पहले से मौजूद अन्य पत्रकार को बुलाकर मूड का अनुमान लगाएं. यदि आवश्यक समझें तो अन्य पत्रकार या फ़ोटोग्राफ़र के साथ चले जाएं.
  • जब तक अन्यथा करना सुरक्षित न हो घटना की रिपोर्टिंग आवंटित निर्धारित प्रेस एरिया से ही करें. यह भी जानने की कोशिश करें की क्या संकट की घड़ी में सुरक्षाकर्मी या पुलिस आपकी मदद करेगी?
  • यदि भीड़ / स्पीकर का रवैया मीडियाकर्मी के प्रति शत्रुतापूर्ण है तो मानसिक तौर पर गाली-गलौच के लिए तैयार रहें. ऐसी परिस्थिति में केवल अपना काम करें और रिपोर्टिंग करें. गाली-गलौच पर प्रतिक्रिया ना दें. भीड़ के साथ न उलझें. याद रखें आप पेशेवर हैं यद्यपि अन्य लोग नहीं हैं.
  • यदि भीड़ द्वारा आप पर थूके जाने या अन्य कोई ज्वलनशील वास्तु फेंके जाने की संभावना है और आप रिपोर्टिंग करने हेतु निश्चित हैं तो ऐसी परिस्थिति में मज़बूत, वॉटरप्रूफ नक़ाबपोश बम्प -कैप पहनें.
  • वातावरण विपरीत होने की दशा में मौके / घटना स्थल /इवेंट के आस पास न घूमें तथा लोगों से सवाल न पूछें.
  • यदि स्थल से बाहर रिपोर्ट करना उद्देश्य है तो ऐसी परिस्थिति में सहकर्मी के साथ कार्य करना बुद्धिमत्तापूर्ण है। सुरक्षित स्थान से रिपोर्ट करें जहाँ से बच निकलना आसान हो.  साथ ही अपने यातायात रूट के बारे में अग्रिम जानकारी प्राप्त करें. यदि हमले की सम्भावना प्रतीत होती है तो ऐसी परिस्थिति में सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ग्राउंड पर  काम समय रहें.
  • यदि कार्य कठिन या चुनौतीपूर्ण था तो ऐसी परिस्थिति में अपनी भावनाओं को न दबाएं. अपने वरिष्ठ एवं सहकर्मियों से चर्चा करें. यह महत्वपूर्ण है कि वे तैयार हैं और सभी एक दुसरे से सीख रहे हैं.

विरोध प्रदर्शन

 योजना:

  • पिछले दिनों सम्पूर्ण भारतवर्ष में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पर क़ाबू पाने के लिए  गोलियां चलाई हैं, रबर की गोलियां , छर्रे की गोलियां, आंसू गैस, लाठीचार्ज एवं छड़ी का उपयोग किया है. यदि हिंसा की संभावना प्रतीत होती है तो सेफ्टी गोगल्स /ग्लास /हेलमेट/आंसू गैस रेस्पिरेटर /शरीर रक्षा कवच (वेस्ट) पहनने पर विचार करें. अधिक जानकारी के लिए CPJ की पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) गाइड यहाँ से पढ़ें.
  • आप जिस स्थान पर जा रहे हैं वहां की जानकारी एक नक़्शे के माध्यम से वहां जाने से पहले लें. पहले से ही इस बात को सुनिश्चित करें कि आपातकाल की स्थिति में आप क्या करेंगे और सभी बच कर निकलने के संभावित रास्तों की पहचान कर लें.
  • पत्रकारों से प्रदर्शन की जगह पर अकेले काम करने की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए. कोशिश करें कि आप अपने किसी सहकर्मी के साथ काम करें. इसके अलावा अपने काम के अड्डे, परिवार एवं दोस्तों से बात करने और समय-समय पर खबर देने की एक प्रक्रिया बना लें. दिन ढ़लने के पश्च्यात जोखिम बढ़ जाता है, इसलिए अँधेरे में काम करने से बचें. इसपर और अधिक जानकारी के लिए CPJ की अकेले रिपोर्टिंग करते पत्रकारों के लिए सलाह गाइड पढ़ें.
  • अगर आपको इस्तेमाल करना आता है तो अपने साथ एक मेडिकल किट ले जाएं. यह भी सुनिश्चित करें कि आपके फ़ोन की बैटरी पूरी तरह चार्ज है.
  • ढ़ीले कपड़े, राजनीतिक नारे लिखे कपड़े, मीडिया से जुड़े चिन्ह, फ़ौजी स्वरुप वाले कपड़े, किसी राजनीतिक पार्टी विशेष से जुड़े रंग अथवा जल्द आग पकड़ने वाले कपड़े (जैसे कि नायलॉन) इत्यादि पहनने से बचें.
  • सख़्त तले, फ़ीते और टख़ने को सहारा देने वाले जूते पहनें.
  • यदि आपके बाल लम्बे हैं तो उन्हें बाँध लें. ऐसा न करने पर बालों को पीछे से खीचें जाने का ख़तरा  बना रहता है.
  • अपने साथ कम से कम मूल्यवान वस्तुएं ले जाएं. अपना कोई भी उपकरण अपने वाहन में ना छोड़ें क्योंकि चोरी का खतरा बना रहता है, खास कर अँधेरा होने के बाद.

जागरूकता एवं स्थिति निर्धारण:

  • अपनी स्तिथि का हमेशा ध्यान रखें और अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर नज़र बनाए रखें. अगर हो सके तो ऊंचाई वाली जगह पर रहें जिससे आपको आस-पास देखने में सुविधा हो और आपकी सुरक्षा बनी रहे.
  • हमेशा बाहर निकलने के रास्ते की अच्छे से समीक्षा करें. यदि आप और लोगों के साथ हैं तो एक मिलने की जगह निर्धारित कर लें.
  • अपने नज़दीकी चिकित्सा सहायता के बारे में पता करें.
  • भीड़ के बीच काम करने की स्तिथि में हमेशा एक रणनीति बना कर रखें. हमेशा भीड़ के दायरे से बाहर रहे और अंदर जाने से बचें जहाँ से आपका निकलना मुश्किल हो सकता है.
  • लगातार अधिकारियों का भीड़ के प्रति बर्ताव देखते रहें. पुलिस भीड़ के उग्र होने पर बहुत सख्त हो सकती है, वहीं भीड़ भी पुलिस की ज़्यादा सख्ती दिखने पर भड़क सकती है. पुलिस का रायट पोषक में होना या फिर पथराव जैसी स्तिथि बिगड़ते हालात का अंदेशा दे सकती हैं. ऐसी परिस्थिति में स्वयं को उस जगह से निकालें और सुरक्षित स्थान पर पहुंचे.
  • फ़ोटोजर्नलिस्ट्स को हिंसा और तनावपूर्ण परिस्तिथियों के नज़दीक काम करना पड़ता है जिसके कारण वह अधिक जोखिम में होते हैं. फ़ोटोग्राफ़र्स को सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई साथी उनके आस-पास ही है जो उन्हें चेता सके एवं उन्हें निरंतर अपने कैमरे से बाहर भी देखते रहना चाहिए. गाला घुटने से बचने के लिए फ़ोटोग्राफर्स को गले में पट्टा नहीं पहनना चाहिए. फ़ोटोजर्नलिस्ट के लिए जोखिम से दूर रह कर काम करना मुमकिन नहीं होता है, इसलिए उन्हें भीड़ के बीच ज़्यादा समय बिताने से बचना चाहिए. तस्वीरें खींचें और बाहर निकल आएं.
  • सभी पत्रकारों को एक भीड़ में ज़रुरत से ज़्यादा रुकने से बचना चाहिए, ख़ास करके ऐसी भीड़ जो जल्द ही उग्र हो सकती हो.
11 दिसंबर 2019 को गुवाहाटी में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए अश्रु गैस का प्रयोग करती पुलिस. (AP/ अनुपम नाथ)

पुलिस द्वारा आँसू गैस इस्तेमाल किये जाने की स्तिथि में

आँसू गैस के इस्तेमाल से खांसी, छींक, थूक निकलना, आँसू निकलना और बलगम से साँस लेने में तकलीफ़ होती है. कई बार इसके संपर्क में से उलटी आना और साँस लेने में मुश्किल होने जैसी समस्या हो सकती है. यह लक्षण हवा में मौजूद कोविड-19 वायरस की बूदों से एक मीडिया कर्मचारी को होने वाले खतरे को कई गुना बढ़ा देते हैं. ऐसे लोग जिन्हें सांस से जुड़ी बीमारी जैसे कि दमा की शिकायत हो या फिर वह कोविड-19 संक्रमण के ज़्यादा जोखिम वाली श्रेणी में आते हों, उन्हें ऐसी जगह जहाँ ऑंसू गैस चलने का खतरा हो, पर जाने से बचना चाहिए.

NPR द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, ऑंसू गैस कोरोना वायरस जैसे रोगजनक़ों से होने वाले संक्रमण की संभावना को कई गुना बढ़ा देती है.

आँसू गैस के असर और उपचार से जुड़ी और अधिक जानकारी के लिए CPJ की सिविल डिसऑर्डर एडवाइजरी पढ़ें.

शारीरिक हमला:

प्रदर्शनकारियों द्वारा पत्रकारों पर हमले की घटनाएं भारत में पहले हो चुकी हैं. जब भी आप ऐसी परिस्तिथि में हों जहाँ आप पर शारीरिक हमला हो सकता हो तो इन बातों का ध्यान रखें:

  • किसी भी प्रदर्शन के स्थान पर जाते समय प्रदर्शनकारियों के पत्रकारों के प्रति बर्ताव पर ध्यान दें. ऐसे लोग जो आप पर हमला कर सकते हैं, उनको लेकर ख़ास सचेत रहें.
  • किसी भी संभावित हमलावर की शारीरक भाषा पर ध्यान दें और अपनी शारीरिक भाषा से परिस्तिथि को समान्य बनाने का प्रयास करें.
  • हमलावर की आँखों में आँखें डाल कर बात करें, खुले हाथों का इस्तेमाल करके बात करें और धीरज बनाए रखें.
  • संभावित हमलावर से एक हाथ की दूरी बनाए रखें और पकडे जाने की स्तिथि में बिना आक्रोश किये, अपने-आप को ढृढ़ता से छुड़ाएं और पीछे हट जाएं. यदि आपका घेराव हो जाता है तो बेहिचक मदद के लिए चिल्लाएं.
  • अगर हमला बढ़ता है तो एक हाथ से अपने सर का बचाव करें और छोटे क़दमों से पीछे हटें ताकि आप ज़मीन पर गिरने से बच सकें. अगर आप अपने साथियों के साथ हैं तो झुंड बना लें और एक दुसरे के हाथों को कास कर पकड़ लें.
  • हालांकि हमलावर बर्ताव रिकॉर्ड करना भी पत्रकार का काम होता है, परन्तु अपनी स्तिथि और सुरक्षा का पहले ध्यान रखें. हमलावरों की तसवीरें लेने से मामला और बिगड़ सकता है.
  • अगर आपसे हमलावर कुछ मांगता है तो उसे वह दे दें, आपके उपकरण की कीमत आपकी जान से ज़्यादा नहीं हैं.

शारीरिक सुरक्षा: आक्रामक समुदाय के बीच से रिपोर्टिंग

पत्रकारों को कई बार ऐसे इलाकों और समुदाय के बीच से रिपोर्टिंग करने होती है जोकि बाहर वालों और मीडिया के प्रति आक्रामक होते हैं. ऐसा तब हो सकता है जब उस समुदाय को ऐसा लगे कि मीडिया उनके पक्ष को सामने नहीं रख रही है या फिर उनपर रिपोर्टिंग अनुचित तरीके से कर रही है. चुनाव के समय पत्रकारों को लम्बे समय तक मीडिया के प्रति आक्रामक समुदाय के बीच काम करना पड़ सकता है.

खतरे को काम करने हेतु:

  • अगर हो सके तो पहले से ही समुदाय के विचारों और बर्ताव के बारे में जाने. उनका मीडिया के प्रति बर्ताव समझने का प्रयास करें और ज़रुरत हो तो लो प्रोफाइल बना कर चलें.
  • समुदाय के बीच अपनी पहुँच बनाने का प्रयास करें. बिना निमंत्रण जाने से मामला बिगड़ सकता है. अगर आप उस इलाके को नहीं जानते हैं तो कोशिश करें स्थानीय लोगों में से कोई आपकी सहायता कर सके. किसी स्थानीय लीडर या समुदाय में अच्छी प्रतिष्ठा वाले इंसान के साथ संपर्क बनाएं जो आपके साथ जा सके और आपकी मदद कर सके. ऐसे किसी प्रभावशाली इंसान से संपर्क बनाएं जो आपातकाल में आपकी सहायत कर सके.
  • अगर समुदाय में शराब और ड्रग्स का सेवन होता है तो याद रखें की परिस्तिथि विपरीत होने की संभावनाएं और भी बढ़ जाती हैं.
  • आदर्श परिस्तिथि यह होगी के आप टीम में काम करें या फिर बैकअप टीम रखें. यह लोग काम की जगह से कुछ दूरी पर किसी मॉल या पेट्रोल पम्प पर रह सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर मदद के लिए आ सकते हैं.
  • अपने काम की जगह के भूगोल का ध्यान रखें और उसके अनुसार रणनीति बनाएं. अगर खतरा बहुत अधिक हो तो सुरक्षाबल के उपयोग के बारे में विचार करें. किसी एक स्थानीय इंसान के साथ होने से वह हालात को भाँप सकता है जब आप अपना काम कर रहे हों और बदलती स्तिथि पर ध्यान न दे सकते हों.
    • अपने वाहन को चलने की स्तिथि में ड्राइवर के साथ तैयार रखें.
    • यदि आपको अपने वाहन से दूर रह कर काम करना पड़े तो वाहन तक पहुँचने का तरीका और रास्ता याद रखें. आस-पास के पहचान चिन्हों को याद रखें और अपने साथियों को भी बताएं.
    • चिकित्सा से जुड़ी आपदा के मामले में पता करें की नज़दीकी सेवा कहाँ से मिल सकती है और बहार निकलने की एक रणनीति बना कर रखें.
  • तस्वीर लेते समय या फिर वीडियो बनाते समय लोगों की सहमति ज़रूर लें, ख़ासकर अगर आपके पास आसानी से बहार निकलने का रास्ता नहीं है.
  • अपना काम होने पर बेवजह वहां ना घूमें. यह हमेश बेहतर होता है कि काम पूरा करने का समय बाध्य हो और उसी समय पर निकल लिया जाए. यदि कोई सहकर्मी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है तो बहस न करें, तुरंत वहां से निकल जाएं.
  • बिना मीडिया लोगो वाले कपड़े पहनें जोकि जगह के अनुकूल हों. अपने वाहन एवं उपकरणों से मीडिया के चिन्ह आवश्यक हो तो हटा दें.
  • अगर आप इस्तेमाल करना जानते हैं तो अपने साथ एक मेडिकल किट ले जाएं
  • किसी भी व्यक्ति के विचारों और सोच के प्रति आदर भाव बनाए रखें.
  • अपने साथ कम से कम कीमती सामान और पैसे ले कर जाएं. यह सोचें कि क्या चोर आपके उपकरण से आकर्षित होंगे? यदि आपको पकड़ लिया जाता है लूटने के कोशिश होती है तो बिना लड़े अपने उपकरण दे दें, आपका जीवन उपकरण से ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं है.
  • रात को ऐसी जगहों पर काम करने से बचें, ऐसे में खतरा कई गुना बढ़ जाता है.
  • अपने काम के प्रकाशित होने से पहले यह सोचें कि क्या आपको दुबारा यहाँ आना पद सकता है? क्या आपकी कहानी से आपकी समुदाय के बीच पहुँच पर असर पड़ेगा?