5 जनवरी, 2022 को मुंबई के एक रेलवे स्टेशन पर फेस मास्क पहने हुए रेल यात्री कोविड-19 के परीक्षण के लिए इंतजार कर रहे हैं। भारत में काम कर रहे पत्रकारों के समक्ष यह वायरस कई बाधाओं में से एक है क्योंकि वे फरवरी और मार्च में हो रहे देश के पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों को कवर करने की तैयारी कर रहे हैं। (एपी / रफ़ीक़ मक़बूल)

भारतीय राज्य विधानसभा चुनाव 2022 : पत्रकार सुरक्षा गाईड

भारत के पांच राज्यों क्रमशः  गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में फरवरी एवं मार्च 2022 में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। 

वह पत्रकार एवं मीडिया कर्मी जो इनमें से किसी भी राज्य के चुनावों में पत्रकारिता  करने जा रहे हैं उन्हें शारीरिक हमलों, डराने की कोशिश, उत्पीड़न; इंटरनेट पर डराना, कोविड-19 संक्रमण, गिरफ़्तारी, नज़रबंदी, रिपोर्टिंग पर सरकारी प्रतिबंध, इंटरनेट पर रोक, इत्यादि रुकावटों और ख़तरों के सन्दर्भ में  जानकारी होनी चाहिए. वर्ष 2021 में भारत में पांच पत्रकारों की पत्रकारिता के कारण मृत्यु हो गई, संख्या के आधार पर इस वर्ष के लिए सीपीजे के वैश्विक रिकॉर्ड में पत्रकारों की मृत्यु के मामले में भारत शीर्ष पर है; 1 दिसंबर, 2021 तक सात पत्रकारों को उनके काम के कारण  जेल में डाल दिया गया था। नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया इंडिया संस्था द्वारा संकलित एक डेटाबेस के अनुसार, भारत में मीडिया के क्षेत्र में काम कर रहे सैकड़ों लोग कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद मारे गए हैं। सांप्रदायिक तनाव के बीच पत्रकारों को अपने धर्म, लिंग और पहचान की वजह से प्रतिशोध का सामना करना पड़ा है और उन पर धार्मिक हिंसा पर पत्रकारिता करने के लिए सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने का आरोप लगाया गया है।

अंतर्वस्तु

• संपादक की सुरक्षा जाँच सूची

• डिजिटल सुरक्षा: ऑनलाइन उत्पीड़न और गलत सूचना अभियान

• डिजिटल सुरक्षा: बुनियादी उपकरण तैयारी

• डिजिटल सुरक्षा: सामग्री की सुरक्षा और भंडारण

• डिजिटल सुरक्षा: सुरक्षित संचार

• शारीरिक सुरक्षा: कोविड-19 के सन्दर्भ में विचार

• शारीरिक सुरक्षा: चुनावी रैलियों और विरोध प्रदर्शनों के दौरान पत्रकारिता करने के सन्दर्भ में 

• शारीरिक सुरक्षा: शत्रुतापूर्ण समुदाय  के बीच जा कर पत्रकारिता करने के सन्दर्भ में

जैसा कि जनसंदेश समाचार पत्र के पूर्व संपादक विजय विनीत, जो अब उत्तर प्रदेश में न्यूज़क्लिक वेबसाइट के लिए स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रहे हैं, ने सीपीजे को फोन के माध्यम से बताया, “उत्तर प्रदेश में कोई भी मीडिया संस्थान पत्रकारों को किसी भी प्रकार का सुरक्षा प्रशिक्षण प्रदान नहीं करता है और  अपने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतज़ाम भी नहीं करता है।”

उन्होंने कहा कि ” जैसा कि हम महसूस हैं कि यह एक बराबर की लड़ाई वाला चुनाव बन गया है,  ऐसे में इन चुनावों में हिंसा होने की प्रबल संभावना है।”

सीपीजे एमर्जेन्सीज़ ने चुनाव के दौरान काम करने वाले पत्रकारों के लिए अपनी सुरक्षा गाइड में बदलाव किए हैं. इस सुरक्षा गाइड में सम्पादकों, पत्रकारों और फ़ोटो पत्रकारों के लिए आगामी विधानसभा चुनावों से जुड़ी तैयारी व डिजिटल, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों से निपटने के सन्दर्भ में  दिशानिर्देश दिए गए हैं.

चुनाव सुरक्षा गाइड की पीडीएफ अंग्रेज़ी, हिंदी एवं पंजाबी भाषाओं में डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध हैं.

संपर्क एवं संसाधन

इस सन्दर्भ  में किसी प्रकार के सहयोग या मदद  के लिए इच्छुक पत्रकार सीपीजे एमर्जेन्सीज़ में [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं. इसके अलावा सीपीजे के एशिया प्रोग्राम में वरिष्ठ शोधकर्ता  सोनाली धवन से sdhawan @cpj.org अथवा भारत संवाददाता कुणाल मजूमदार से [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.

इसके अलावा,सीपीजे के संसाधन केन्द्र से सौंपे गए काम पर जाने से पहले की तैयारी और किसी घटना के बाद सहायता से जुड़ी और अधिक जानकारी भी प्राप्त की जा सकती है.

सम्पादक सुरक्षा सूची

विधान सभा चुनाव से पहले, चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद, सम्पादक एवं सम्पादकीय प्रभाग अपने संस्थान के पत्रकारों को कम समय के नोटिस पर समाचार संकलन करने के लिए भेज सकते हैं. इस सूची में कुछ ऐसे सवाल और कार्य विधि का विवरण है जिनके माध्यम से पत्रकार काम से जुड़े जोखिम को कम कर सकते हैं.

पत्रकार चुनते समय ध्यान में रखने योग्य बिंदु :

  • क्या पत्रकार के पास इस काम के सन्दर्भ में ज़रूरी अनुभव है?
  • क्या चुने हुए पत्रकार कोविड-19 की जोखिम श्रेणी में आते हैं, या फिर क्या उनके परिवार में ऐसे लोग हैं जो उन पर आश्रित हैं?
  • क्या एक संभावित जोखिम भरी जगह (जैसे कि चुनाव रैली इत्यादि ) पर पत्रकार अपने लिंग, धर्म, या जातीयता की वजह से आसान निशाना बन सकते हैं?
  • क्या पत्रकार यह काम करने के लिए शारीरिक रूप से योग्य हैं, और क्या आपने पत्रकारिता के दौरान संभावित स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के बारे में उनसे बात की है?
  • क्या किसी एक ख़ास भूमिका में काम करना पत्रकार को ज़्यादा जोखिम की स्थिति में डाल सकता है? उदाहरण के लिए, फ़ोटो पत्रकार अक्सर कार्रवाई के अधिक निकट होते हैं.

उपकरण और यातायात

  • क्या आपने चुने हुए पत्रकार से फ़ील्ड में कोविड-19 होने के जोखिम  के बारे में बात की है, और क्या आपने उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाला मास्क एवं हैंड सैनिटाइज़र मुहैया कराया है?
  • अगर वह ऐसे प्रदर्शन में जा रहे हैं जहां हिंसा होने की संभावना है, तो क्या आपने उन्हें बचाव के सही उपकरण जैसे कि, हेलमेट, सुरक्षा चश्मे, शारीरिक कवच, आंसू  गैस वाला नकाब और चिकित्सा किट मुहैया कराए हैं?
  • क्या रिपोर्टर स्वयं गाड़ी चला कर जाने वाले हैं, और क्या यह वाहन सही स्थिति में है?
  • क्या आपने  यह सुनिश्चित किया है कि आप अपनी टीम से कैसे संपर्क स्थापित करेंगे करेंगे और आपातकाल या समस्या होने की स्थिति में बच कर निकलने के तरीकों के बारे में बात की है?

 ध्यान में रखने योग्य कुछ सामान्य  बिंदु :

  • क्या आपने फ़ील्ड में तैनात किये जाने वाले सभी स्टाफ़ के आपातकालीन संपर्क विवरणों की जानकारियां दर्ज करते हुए उन्हें सुरक्षित रखा है ?
  • क्या आपके कर्मचारियों के पास सही पहचान पत्र, या ऐसे दस्तावेज़ हैं जिनसे यह सिद्ध हो सके कि वह आपकी संस्था के साथ काम करते हैं ?
  • क्या आपकी टीम के पास सही बीमा है, या क्या उनका ठीक मेडिकल कवर किया गया है?
  • क्या किसी चोट-चपेट लगने की परिस्थिति में आप स्थानीय चिकित्सा व्यवस्था से अवगत हैं, और क्या आपने अपने कर्मचारियों को इसकी जानकारी प्रदान की है?
  • क्या आपने अपने कर्मचारियों से काम के दौरान होने वाली मानसिक क्षति और इससे होने वाले दूरगामी असर के बारे में बात की है?

जोखिम के आंकलन और उससे जुड़ी तैयारी के सन्दर्भ में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए सीपीजे के रिसोर्स सेंटर पर जाएं.

चुनाव की अवधि के दौरान लक्षित ऑनलाइन अभियानों सहित ऑनलाइन उत्पीड़न के मामलों के बढ़ने की संभावना है, विशेष रूप से भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान ऐसे मामले बढ़ सकते हैं। हाल के परिष्कृत उदाहरणों में टेक फॉग नामक ऐप का मामला शामिल है, जिसने विशिष्ट पत्रकारों के बारे में आपत्तिजनक संदेशों के बड़े पैमाने पर वितरण करने को प्रोत्साहित किया है। महामारी के दौरान हिन्दी, अंग्रेजी एवं बांग्ला भाषाओं में  अभद्र भाषा फेसबुक पर फैल गई थी, द वायर ने प्रकाशित किया कि  महिलाओं और अल्पसंख्यकों को लोकप्रिय लक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया एवं कुछ को नकली नीलामियों के माध्यम से बिक्री के लिए पेश किया गया। मीडिया कर्मियों को अक्सर ऐसे ऑनलाइन हमलावरों द्वारा निशाना बनाया जाता है जो पत्रकार और उनके काम को बदनाम करना चाहते हैं। इसमें अक्सर समन्वित उत्पीड़न और गलत सूचना अभियान शामिल हो सकते हैं जो पत्रकार को सोशल मीडिया का उपयोग करने में असमर्थ छोड़ देते हैं, अनिवार्य रूप से उन्हें ऑफ़लाइन करने के लिए मजबूर करते हैं। ऑनलाइन हमलों से बचाव करना आसान नहीं है, हालांकि कुछ ऐसे कदम हैं जो पत्रकार अपनी और अपने सोशल मीडिया के खातों की बेहतर सुरक्षा के लिए उठा सकते हैं।


कोविड -19 कोरोना वायरस के खिलाफ निवारक उपाय के रूप में फेसमास्क पहने हुए एक व्यक्ति 11 जनवरी, 2022 को नई दिल्ली के एक बाजार में अपने मोबाइल फोन पर बात कर रहा है। (एएफपी / सज्जाद हुसैन)

बेहतर सुरक्षा हेतु उपाय: सोशल मीडिया अकाउंट की सुरक्षा

ऑनलाइन उत्पीड़क आपके सोशल मीडिया अकाउंट से व्यक्तिगत जानकारी हासिल कर आपको निशाना बना सकते हैं और आपका  उत्पीड़न कर सकते हैं अतः अपने खाते और उसके डाटा की सुरक्षा हेतु निम्नलिखित  कदम उठाएं:

  • अपने अकाउंट का लम्बा और मज़बूत पासवर्ड बनाएं जिसमें 16 या अधिक कैरेक्टर (अक्षर+अंक+ चिन्ह का समन्वय)  हो. तथा प्रत्येक खाते के लिए यह पासवर्ड अद्वितीय होना चाहिए. ऐसा करने के लिए ‘पासवर्ड मैनेजर’ का उपयोग करें जोकि वर्तमान में पासवर्ड बनाने का सबसे सुरक्षित तरीका है. ऐसा करने पर पासवर्ड हैक होने से बचा जा सकता है.
  • खातों में दो-फैक्टर प्रमाणीकरण (2FA) का इस्तेमाल करें.
  • अपने प्रत्येक खाते की प्रिवेसी सेटिंग की समीक्षा करें और यह सुनिश्चित करें कि अपनी निजी जानकारियां जैसे कि फ़ोन नंबर, जन्मतिथि, इत्यादि हटा दी गयीं हैं. इस बात की भी जांच करें कि सोशल मीडिया पर आपकी व्यक्तिगत जानकारी तक किन लोगों की पहुँच है और अपनी प्राइवेसी सेटिंग को अधिक कड़ा करें.
  • अपने अकाउंट्स की जांच करें और ऐसी तस्वीरों को हटा दें जिनमें हेरा-फेरी कर आपको बदनाम किए जा सकता है. ट्रोल्स द्वारा इस तकनीक का अक्सर प्रयोग किया जाता है.
  • अपने सोशल मीडिया खातों पर बढ़ती ट्रोलिंग गतिविधि पर निरंतर निगाह रखें और ऑनलाइन ख़तरों के शारीरिक ख़तरों में बदलने के संकेतों पर भी ध्यान दें. इस बात का ध्यान रखें की कुछ कहानियां लिखने पर उत्पीड़न का स्तर और अधिक बढ़ सकता है.
  • ऑनलाइन उत्पीड़न के बारे में अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों से चर्चा करें. सामान्यतः ट्रोल्स सोशल मीडिया के माध्यम से पत्रकारों के पत्रकारों के परिजनों और सामाजिक सर्किल के बारे में जानकारी हासिल कर लेते हैं. अपने लोगों से आग्रह करें कि वे अपनी साइट से आपकी तस्वीरें हटा दें या फिर अपना अकाउंट लॉक कर लें.
  • अपने मीडिया संस्थान से ऑनलाइन उत्पीड़न के बारे में बात करें. तथा उत्पीड़न गंभीर होने की दशा में की जाने वाली कार्यवाही की योजना को भी पहले से तैयार रखें.

ऑनलाइन हमला होने की स्थिति में क्या करें:

  • ऑनलाइन उत्पीड़क के साथ उलझें नहीं अन्यथा स्थिति और बिगड़ सकती है.
  • यह जानने की कोशिश करें कि हमले के पीछे कौन लोग हैं और उनकी मंशा क्या है? हो सकता है हमले के पीछे की वजह आपके द्वारा की गयी कोई रिपोर्ट या आपके द्वारा लिखी गयी खबर हो.
  • ऐसी स्थिति में पत्रकार को सोशल मीडिया कंपनी को उसके साथ हुए अपमानजनक व्यवहार और हमले की तुरंत जानकारी देनी चाहिए.
  • कोई भी कमेंट या तस्वीर जिसके ज़रिये आप पर हमला हुआ है, उसकी जानकारी अपने पास रखें. यह आप स्क्रीनशॉट ले कर, हमले का समय दिनांक और ट्रोल का सोशल मीडिया हैंडल अपने पास सुरक्षित रख लें. यह सूचनाएं बाद में महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं यदि यह आप अपने मीडिया संस्थान, सम्पादक, या किसी अन्य संगठन को दिखाना चाहते हैं जो आपकी अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा करता हो.
  • हैकिंग के संकेतों से सावधान रहें. यह सुनिश्चित करें कि आपके सोशल मीडिया खातों का पासवर्ड मज़बूत और लम्बा हो, तथा आप 2FA का उपयोग कर रहे हों.
  • ऑनलाइन उत्पीड़न की सूचना अपने परिवारजनों, सहकर्मियों को दें. उत्पीड़क प्रायः आपके परिवार और आपके कार्यस्थल से संपर्क करने का प्रयास करते हैं और आपकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने के लिए तसवीरें एवं  दूसरी जानकारी भेजते हैं.
  • उत्पीड़न करने वालों को आप ब्लॉक या म्यूट कर सकते हैं.
  • आपको सोशल मीडिया कंपनी को अपमानजनक संदेशों की जानकारी देनी चाहिए और इस  मामले में कंपनी के साथ हुए संवाद का ब्यौरा रखना चाहिए.
  • अपने सोशल मीडिया अकाउंट की समीक्षा करें और ऐसे कमेंट्स का पता लगाएँ जो यह इंगित करते हैं कि ऑनलाइन धमकी शारीरिक हमले में बदल सकती है.
  • इसमें लोगों द्वारा आपके घर के पते को ऑनलाइन पोस्ट किया जा सकता है. इसे ‘डोक्सिंग’ के नाम से जाना जाता है. शारीरिक खतरे में लोगों को आप पर हमला करने के लिए उकसाना और किसी व्यक्ति विशेष द्वारा अधिक उत्पीड़न करना शामिल हैं.
  • उत्पीड़न समाप्त होने तक ऑफलाइन रहें.
  • ऑनलाइन उत्पीड़न अकेलेपन से भरा अनुभव हो सकता है. इस बात का ध्यान रखें कि ऐसे समय में आपके पास सहयोग के लिए नेटवर्क हो जो आपकी मदद कर सके. इस मामले में आपका नियोक्ता आपका सबसे बड़ा सहयोगी हो सकता है.

डिजिटल सुरक्षा:  उपकरणों से सम्बंधित बुनियादी तैयारी :

चुनाव में पत्रकारिता या समाचार संकलन करने के दौरान पत्रकारों को अक्सर अपने मोबाइल फोन के माध्यम से समाचार संकलन एवं समाचारों का आदान प्रदान करने के साथ अपने सहकर्मियों एवं सूत्रों से संपर्क में बने रहना होता है।  चुनाव के दौरान काम से जुड़ी सामग्री की सुरक्षा और संचयन पर संलेख होना महत्वपूर्ण है. यदि कोई पत्रकार गिरफ़्तार कर लिए जाते हैं, और उनके उपकरणों की जाँच होती है, तो ऐसी परिस्थिति में पत्रकार और उनके सूत्रों के लिए गंभीर समस्या पैदा हो सकती है. चुनाव के दौरान रिपोर्टिंग करते समय उपकरण को क्षति पहुँचने या खो जाने का ख़तरा बना रहता है. ऐसे में डाटा बैकअप न होने पर पत्रकार द्वारा इकट्ठा की गई महत्वपूर्ण जानकारी खो सकती है. अतः किसी  भी कार्य पर जाने से पहले इन बिंदुओं का ध्यान रखें :

  • अपने उपकरणों जैसे कि मोबाइल फ़ोन, कंप्यूटर इत्यादि पर किस तरह की जानकारी है, इसकी समीक्षा कर लें. कोई भी ऐसी जानकारी जो आपको ख़तरे  में डाल सकती है या जो संवेदनशील है, उसे बैकअप  कर अपने उपकरण से हटा दें. ऐसे तरीके मौजूद हैं जिनसे उपकरण से हटाई हुई जानकारी दोबारा प्राप्त की जा सकती है. यदि कोई ऐसी जानकारी आपकी पास है जो अति-संवेदनशील है, उसे सिर्फ़ डिलीट करने के बजाए कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर के माध्यम से हमेशा के लिए अपने उपकरण से हटा दें.
  • समाचार संकलन पर जाने से पहले किसी हार्ड ड्राईव पर अपने मोबाइल फोन का बैकअप बना लें।  इसके साथ अपने उपकरण से हर वो व्यक्तिगत जानकारी जैसे कि पारिवारिक तस्वीरें इत्यादि हटा दें या उन तक  पहुँच पाने की सीमा को नियंत्रित रखें। 
  • उन सभी खातों एवं ऐप से लॉगआउट कर लें जिनका इस्तेमाल आपको चुनाव में समाचार संकलन  के दौरान नहीं करना है। सभी ब्राउज़िंग वेबसाइटों से लॉगआउट कर जायें एवं अपनी ब्राउजिंग हिस्ट्री को हटा दें।  ऐसा करने से आपके खाते उस परिस्थिती में भी सुरक्षित रहेंगे यदि अगर कभी आपका फोन लिया और उसकी जांच की जा सकती है. यह आपके खातों को एक्सेस होने से बेहतर ढंग से सुरक्षित रखेगा। 
  • अपने सभी उपकरणों को पासवर्ड द्वारा सुरक्षित रखें साथ ही अपने  मोबाइल एवं कंप्यूटर पर रिमोट वाइप पहले से ही लगा कर रखें. रिमोट वाईप की सुविधा का इस्तेमाल अब तभी कर सकते हैं, जब आपका उपकरण इंटरनेट से जुड़ा हुआ हो. बायोमैट्रिक तरीकों जैसे कि उँगलियों के निशान (फिंगर प्रिंट)  का इस्तेमाल करने से बचें, वरना आपके गिरफ्तार हो जाने की स्थिति में आपका फोन आसानी से खोला जा सकता है।
  • जितना हो सके अपने साथ कम से कम उपकरण ले कर जाएं। यदि आपके पास अतिरिक्त उपकरण हैं, तो उनका उपयोग करें और व्यक्तिगत या कार्य सम्बंधित उपकरणों को अलग सुरक्षित रख दें।
  • अपने एंड्रॉयड  फ़ोन के लिए एन्क्रिप्शन चालू करने पर विचार करें। नए मॉडल के आईफोन  में मानक के रूप में एन्क्रिप्शन होता है। कृपया एन्क्रिप्शन के उपयोग के संबंध में कानून की जाँच करें।
  • जहां तक संभव हो, अपने सहकर्मियों और सूत्रों के साथ संवाद करने के लिए सिग्नल या व्हाट्सएप जैसी एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सेवाओं का उपयोग करें। एक निश्चित समय सीमा के बाद संदेशों को हटाने के लिए सेट करें।
  • यदि कुछ वेबसाईट अवरुद्ध हो जाते हैं तो उन  साइटों पर जाने के लिए एक वीपीएन स्थापित करें। एक वीपीएन का उपयोग करने के स्थानीय कानून पर शोध करें और यह भी देखें कि किस वीपीएन प्रदाता ने पहले आंशिक इंटरनेट शटडाउन के दौरान सबसे अच्छा काम किया है।
  • पूरी तरह से इंटरनेट बंद होने पर आप दूसरों से कैसे और कब संपर्क करेंगे, इसकी योजना बनाएं।
  • ध्यान रखें कि सिटीजन लैब और सीपीजे साक्षात्कारों द्वारा किये गये  शोध के अनुसार, भारत में पत्रकारों के खिलाफ कथित तौर पर पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया गया है। एक बार आपके फोन में इंस्टॉल हो जाने पर, यह परिष्कृत स्पाइवेयर एन्क्रिप्टेड संदेशों सहित आपकी सभी गतिविधियों की निगरानी करता रहता है । [इज़राइल स्थित एनएसओ ग्रुप का कहना है कि वे पेगासस को केवल कानून प्रवर्तन उद्देश्यों के लिए सरकारों के लिए एक निगरानी उपकरण के रूप में वितरित करता है, और उनके द्वारा  बार-बार सीपीजे को बताया गया है कि वे  उन सभी रिपोर्टों  की जांच कर रहे हैं  कि अनुबंध के उल्लंघन में उनके उत्पादों का दुरुपयोग किया गया था।]

डिजिटल सुरक्षा पर और अधिक जानकारी के लिए  की सीपीजे डिजिटल सुरक्षा गाइड को पढ़ें.

पेगासस स्पाईवेयर पर और अधिक जानकारी के लिए सीपीजे  की सुरक्षा प्रदर्शिका को पढ़ें.


डिजिटल सुरक्षा: सामग्री की सुरक्षा और भंडारण :

चुनाव के समय काम से सबंधित सामग्री के भंडारण और सुरक्षा के बारे में अच्छे प्रोटोकॉल होना महत्वपूर्ण है। यदि किसी पत्रकार को हिरासत में लिया जाता है, तो उनके उपकरणों को जब्त किया जा सकता है और उसमें संकलित दस्तावेजों इत्यादि को खोजा जा सकता है, जिसके परिणाम  पत्रकार और उनके सूत्रों के लिए गंभीर हो सकते हैं। चुनाव में समाचार संकलन करते समय उपकरणों को तोड़ा या चोरी भी किया जा सकता है, ऐसे में डाटा बैकअप न होने पर पत्रकार द्वारा इकट्ठा की गई महत्वपूर्ण जानकारी खो सकती है.

इन बिंदुओं को ध्यान में रख कर आप खुद को और संकलित सूचनाओं को  सुरक्षित रख सकते हैं :  

  • समीक्षा करें कि आपके फ़ोन और कंप्यूटर सहित आपके उपकरणों पर कौन सी जानकारी संग्रहित है। जो कुछ भी आपको जोखिम में डालता है या जिसमें संवेदनशील जानकारी होती है, उसका बैकअप लिया जाना चाहिए और उसे हटा दिया जाना चाहिए। हटाई गई जानकारी को पुनः प्राप्त करने के कई तरीके हैं, इसलिए जो कुछ भी बहुत संवेदनशील है उसे केवल हटाए जाने के बजाय एक विशिष्ट कंप्यूटर प्रोग्राम का उपयोग करके स्थायी रूप से मिटाने की आवश्यकता होगी।
  • स्मार्टफोन पर सामग्री की समीक्षा करते समय, आपको फोन पर संग्रहित जानकारी (हार्डवेयर) के साथ-साथ क्लाउड में संग्रहित जानकारी (गूगल फ़ोटो या आईक्लॉउड) की जांच करनी चाहिए।
  • अपने फ़ोन की मैसेजिंग ऐप जैसे वॉट्सऐप  में रखी जानकारी की समीक्षा करें. कोई भी ऐसी जानकारी जिससे पत्रकारों को ख़तरा हो सकता है, उसे उन्हें हटा देना चाहिए. यह ध्यान रखें कि वॉट्सऐप  आपके उपकरण से जुड़े क्लाउड जैसे कि, आईक्लॉउड  या गूगल ड्र्राईव में अपने-आप आपकी बातों का बैकअप बना लेता है.
  • इस बारे में विचार करें कि आप अपना बैकअप कहाँ रखेंगे? आप बैकअप, क्लाउड, हार्ड ड्राइव या फिर पेनड्राइव में कर सकते हैं. आपको यह तय करना होगा  कि अपनी सामग्री को क्लाउड में, बाहरी हार्ड ड्राइव पर या फ्लैश ड्राइव पर रखना सुरक्षित है या नहीं।
  • पत्रकारों को नियमित रूप से सामग्री को अपने उपकरणों से हटा देना चाहिए और इसे अपनी पसंद के बैक अप विकल्प पर सहेजना चाहिए। ऐसा करने से यह  सुनिश्चित हो जायेगा कि यदि आपके उपकरण ले लिए गए हैं या चोरी हो गए हैं तो आपके पास जानकारी की एक प्रति है।
  • आपके द्वारा बैकअप की जाने वाली किसी भी जानकारी को एन्क्रिप्ट करना एक अच्छा विचार है। आप अपनी बाहरी हार्ड ड्राइव या फ्लैश ड्राइव को एन्क्रिप्ट करके ऐसा कर सकते हैं। आप अपने उपकरणों के लिए एन्क्रिप्शन भी चालू कर सकते हैं। पत्रकारों को उस देश में कानून की समीक्षा करनी चाहिए जिसमें वे काम कर रहे हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे एन्क्रिप्शन के उपयोग के सन्दर्भ में  किसी भी वैधता से अवगत हैं।
  • यदि आपको इस बात का संदेह है कि आप एक लक्ष्य हो सकते हैं और एक विरोधी आपकी  बाहरी हार्ड ड्राइव सहित आपके उपकरणों को चुराना चाहता है, तो आपको अपनी हार्ड ड्राइव को अपने घर के अलावा किसी अन्य स्थान पर रख देना चाहिए।
  • अपने सभी उपकरणों पर पिन लॉक ज़रूर लगाएं. आपका पिन लॉक जितना लम्बा होगा उसे तोड़ पाना उतना ही कठिन होगा.
  •  अपने मोबाइल एवं कंप्यूटर पर रिमोट वाइप पहले से ही लगा कर रखें. इससे आपातकालीन स्थिति में, जैसे कि पुलिस द्वारा उपकरण जब्त किये जाने पर आप दूर से ही संवेदनशील जानकारी को हटा सकते हैं. लेकिन याद रहे, यह सुविधा आप तभी इस्तेमाल कर सकते हैं, जब आपका उपकरण इंटरनेट से जुड़ा हुआ हो.

डिजिटल सुरक्षा: सकुशल संचार के तरीके

सुरक्षित तरीके से संवाद आपकी डिजिटल सुरक्षा का एक अहम् हिस्सा है. ऐसे समय में यह और ज़रूरी हो जाता है  क्योंकि ज़्यादातर पत्रकार कोविड-19 के चलते किसी एक जगह से काम नहीं कर रहे हैं. पत्रकार और सम्पादक मिलने के बजाए, वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग कर रहे हैं. ऐसे में यह सुनिश्चित करना कि इन मीटिंग्स को कोई और आसानी से देख न पाए, कर्मचारियों और सूत्रों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी हो जाता है.

  • आवश्यकता पड़ने पर यह सुनिश्चित करें कि आपका अकाउंट एक अनोखे पासवर्ड द्वारा सुरक्षित है. एवं इसके अलावा  टू-स्टेप वेरिफ़िकेशन का हमेशा प्रयोग करें.
  • अगर हो सके तो ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस के लिए अपने निजी ई-मेल की जगह व्यावसायिक ई-मेल का प्रयोग करें. इससे आप अपना निजी डाटा जैसे कि अपनी संपर्क सूची को कॉन्फ्रेंस में मौजूद दूसरे लोगों और कॉन्फ्रेंस प्लेटफॉर्म से सुरक्षित रख सकते हैं.
  • कॉन्फरेंस से जुड़ी कोई भी जानकारी को सोशल मीडिया पर ना डालें. ऐसा तभी करें जब कॉन्फ्रेंस सार्वजनिक हो और आप उक्त कॉन्फ्रेंस में  भाग लेने वालों को नियंत्रित नहीं करना चाहते हों.
  • यह सुनिश्चित कर लें कि आप कॉन्फ्रेंस प्लेटफॉर्म सेवा का सबसे नए संस्करण इस्तेमाल कर रहे हैं.
  • यदि आपको 10 या उससे कम लोगों से वीडियो पर बात करनी है तो वॉट्सऐप  या सिग्नल ऐप का इस्तेमाल करें.

ज़ूम का प्रयोग करते समय:

ज़ूम का प्रयोग करते समय, स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए इन बातों का ध्यान रखें:

  • ज़ूम वीडियो कॉल पर आने वाले हर एक व्यक्ति के लिए ख़ास आईडी बनता है, इसे सार्वजनिक न करें. उदाहरण के लिए, इस आईडी को सोशल मीडिया पर ना डालें.
  • मीटिंग में प्रवेश करने के लिए एक पासवर्ड बनाएं.
  • ज़ूम पर ‘वेटिंग रूम’के विकल्प को चुनें. इससे आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि केवल बुलाए गए लोग ही आपकी मीटिंग में प्रवेश कर पाएं. इस विकल्प से आप यह देख पाएंगे कि कौन ‘वेटिंग रूम में है और बिन बुलाए लोगों को आसानी से हटा पाएंगे.
  • एक बार सभी आमंत्रित लोगों के आने पर अपने मीटिंग रूम को लॉक करना न भूलें.
  • आप मीटिंग को नियंत्रित कर सकते हैं, जिसमें वीडियो बंद/चालू करना, आवाज़ बंद/चालू करना शामिल हैं. इसके अलावा आप यह भी नियंत्रित कर सकते हैं कि किसकी स्क्रीन बाकि लोग देख सकते हैं.
  • आप ज़ूम कॉल  के दौरान किसी को भी मीटिंग से बाहर निकल सकते हैं और उनके मीटिंग में दोबारा शामिल होने पर प्रतिबंध भी लगा सकते हैं.
  • मीटिंग से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि सभी आमंत्रित लोगों के पास ज़ूम का सबसे नया संस्करण है एवं वह एन्ड-टू-एन्ड एन्क्रिप्शन का प्रयोग कर रहे हैं। 

अधिक जानकारी के लिए, घर से काम करने वाले पत्रकारों के लिए सीपीजे  की डिजिटल सुरक्षा सलाह देखें।


शारीरिक सुरक्षा: कोविड-19 के सन्दर्भ में

चुनाव के दौरान या सम्बंधित विरोध प्रदर्शन के दौरान शारीरिक दूरी बनाए रखना चुनौतीपूर्ण कार्य होता है. आम तौर पर इलाके भीड़-भरे होते हैं, जहाँ संभवतः ही आम लोग अपने चेहरे को नहीं ढक रहे  होते हैं या फेस मास्क नहीं लगाए हुए होते हैं. ऐसे में संभव है कि मीडियाकर्मी दूसरे पत्रकारों से बहुत कम दूरी पर काम कर रहे हों.  कम दूरी के कारण मीडियाकर्मी वायरस का शिकार हो सकते हैं, इसके अलावा कुछ हमलावर जबरन बोल कर या खांस कर आपके ऊपर शारीरिक हमला कर सकते हैं.

ध्यान दें रैली में चिल्लाते और नारे लगाते हुए लोग वायरस की बूदें फैला सकते हैं, जिससे मीडिया कर्मियों में कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है.

  • भारत में हर राज्य में कोविड-19 को ले कर सार्वजनिक प्रतिबंध अलग-अलग हैं. इसमें बिना किसी पूर्व-सूचना के या बहुत कम समय की सूचना पर बदलाव किये जा सकते हैं. समाचार संकलन के लिये जाने से पहले यह सुनिश्चित करें कि किस तरह के प्रतिबंध लगे हुए हैं. यह देखा गया है कि वर्ष  2020 के दौरान अनेक पत्रकारों पर इस हमले किए गए और पुलिस द्वारा प्रतिबंध की अवहेलना के नाम पर पत्रकारों को हिरासत में लिया गया.
  • यदि आप आप विदेश यात्रा कर रहे हैं या चुनावी खबरों के लिए एक राज्य से दूसरे  राज्य की यात्रा कर रहे हैं तो आपको हाल ही में किये गए कोविड-19 टेस्ट की रिपोर्ट प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत करनी पड़ सकती है, या आगमन  पर आपको क्वारंटाइन किया जा सकता है. राज्यों के हिसाब से काम आने वाली गाइड को आप यहाँ देख सकते हैं.
  • किसी भी भीड़-भाड़ वाले इलाके या प्रदर्शन स्थल पर अच्छी गुणवत्ता वाले मास्क का उपयोग करना आवश्यक है (N95 / FFP2 वाली या ज़्यादा गुणवत्ता). याद रखें कि मास्क नहीं पहनने पर आपको अर्थदंड देने को कहा जा सकता है.
  • अपने कार्य के दौरान जहाँ तक संभव हो, नियमित तौर पर सही तरीके से अपने हाथ धोते रहें. यह भी सुनिश्चित करें कि आपके हाथ उचित तरीके से सुखा लिए गए हैं. यदि आप बार-बार अपने हाथ नहीं धो सकते हैं तो अलकोहल-बेस्ड हैंड सैनीटाईज़र का उपयोग करें, लेकिन इसे नियमित रूप से हाथ धोने का विकल्प नहीं बनाएं.
  • काम से लौटने पर अपने निवास स्थान में प्रवेश करने से पहले सभी कपड़े एवं जूते उतारें. जहाँ तक संभव हो, कपड़ों को गरम पानी और साबुन से साफ़ करें.
  • अपना कार्य पूरा हो जाने पर अपने उपकरणों को अच्छी तरह से साफ़ करें.

कोविड-19 रिपोर्टिंग दिशानिर्देशों के लिए   सीपीजे सुरक्षा सलाह को यहाँ देखें


दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा के पास गाजीपुर में एक विरोध स्थल को खाली करते हुए  किसानों के बीच भारत के सबसे बड़े किसान संघों में से एक, भारतीय किसान संघ के नेता राकेश टिकैत  15 दिसंबर, 2021 को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज हाथ में लिए हुए। (रॉयटर्स/ अनुश्री फडणवीस)

शारीरिक सुरक्षा: चुनाव रैलियों और प्रदर्शनों से रिपोर्टिंग

चुनाव के दौरान मीडिया कर्मियों को अक्सर भीड़-भाड़ वाली रैलियों, प्रचार अभियान, लाइव ब्रॉडकास्ट और प्रदर्शनों से काम करना होता है.

ऐसी जगहों से काम करने समय स्वयं की सुरक्षा हेतु मीडियाकर्मी इस बातों का ध्यान रखें:

राजनीतिक आयोजन एवं रैलियां

  • कृपया सुनिश्चित करें कि आपके पास उचित प्रेस-पहचान पत्र एवं मान्यता हो. स्वतंत्र पत्रकारों  के पास कमीशनिंग नियोक्ता द्वारा दिया गया  पत्र ऐसे में मददगार साबित होगा. इस पत्र को प्रदर्शित करें यदि ऐसा करना सुरक्षित हो. पहचान पत्र की डोरी को गले में डालने के बजाए अपने बेल्ट के साथ बाँध लें, या अपने हाथ के ऊपरी हिस्से पर पारदर्शी वेल्क्रो पाउच में बांध लें.
  • अपनी मीडिया कंपनी की ब्रांडिंग वाले कपड़े न पहनें. अपने उपकरणों और वाहनों से अपनी मीडिया कंपनी के चिन्ह हटा दें.
  • सैंडल एवं फिसलने वाले जूते नहीं पहनें. इनकी जगह कड़क तले वाले मज़बूत जूते पहनें जो कि आपके टख़नों को सहारा दे सकें.
  • अपने वाहन को सुरक्षित स्थान पर खड़ा करें ताकि आवश्यकता पड़ने पर बच निकल सकें और वाहन का अगला हिस्सा निकलने के मार्ग की दिशा में रखें.
  • परिस्थिति बिगड़ने की दशा में बच कर निकलने की रणनीति बना कर रखें. यह आप लोकेशन पर पहुंचे के बाद कर सकते हैं, पर कोशिश करें कि इसकी तैयारी पहले से कर के रखें. अपनी लोकेशन से बाहर निकलने के सभी रास्तों को पहचान लें.
  • भीड़ का मूड भाँपने का प्रयास करें. यदि संभव हो तो उसी स्थान पर पहले से मौजूद अन्य पत्रकार को बुलाकर मूड का अनुमान लगाएं. यदि आवश्यक समझें तो अन्य पत्रकार या फ़ोटोग्राफ़र के साथ चले जाएं.
  • जब तक करना सुरक्षित न हो तब तक घटना की रिपोर्टिंग आवंटित निर्धारित प्रेस एरिया से ही करें. यह भी जानने की कोशिश करें कि क्या संकट की घड़ी में सुरक्षाकर्मी या पुलिस आपकी मदद करेगी?
  • यदि भीड़ / स्पीकर का रवैया मीडियाकर्मी के प्रति शत्रुतापूर्ण है तो मानसिक तौर पर गाली-गलौच के लिए तैयार रहें. ऐसी परिस्थिति में केवल अपना काम करें और पत्रकारिता करें. गाली-गलौच पर प्रतिक्रिया ना दें. भीड़ के साथ न उलझें. याद रखें आप पेशेवर हैं यद्यपि अन्य लोग नहीं हैं.
  • यदि भीड़ द्वारा आप पर थूके जाने या अन्य कोई ज्वलनशील वस्तु फेंके जाने की संभावना है और आपका पत्रकारिता करना निश्चित हैं तो ऐसी परिस्थिति में मज़बूत, वॉटरप्रूफ नक़ाबपोश बम्प -कैप पहनें.
  • वातावरण विपरीत होने की दशा में मौके / घटना स्थल /इवेंट के आस पास न घूमें तथा लोगों से सवाल न पूछें.
  • यदि स्थल से बाहर रिपोर्ट करना उद्देश्य है तो ऐसी परिस्थिति में सहकर्मी के साथ कार्य करना बुद्धिमत्तापूर्ण है। सुरक्षित स्थान से रिपोर्ट करें जहाँ से बच निकलना आसान हो.  साथ ही अपने यातायात रूट के बारे में अग्रिम जानकारी प्राप्त करें. यदि हमले की सम्भावना प्रतीत होती है तो ऐसी परिस्थिति में सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ग्राउंड पर  कम समय रहें.
  • यदि कार्य कठिन या चुनौतीपूर्ण था तो ऐसी परिस्थिति में अपनी भावनाओं को न दबाएं. अपने वरिष्ठ एवं सहकर्मियों से चर्चा करें. यह महत्वपूर्ण है कि वे तैयार हैं और सभी एक दूसरे  से सीख रहे हैं.

विरोध प्रदर्शन :

 योजना:

  • पिछले दिनों सम्पूर्ण भारत में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पर क़ाबू पाने के लिए  गोलियां चलाई हैं, रबर की गोलियां , छर्रे की गोलियां, आंसू गैस, लाठीचार्ज एवं छड़ी का उपयोग किया है. यदि हिंसा की संभावना प्रतीत होती है तो सेफ्टी गोगल्स /ग्लास /हेलमेट/आंसू गैस रेस्पिरेटर /शरीर रक्षा कवच (वेस्ट) पहनने पर विचार करें. अधिक जानकारी के लिए सीपीजे की पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) गाइड यहाँ से पढ़ें.
  • आप जिस स्थान पर जा रहे हैं वहां की जानकारी एक नक़्शे के माध्यम से वहां जाने से पहले प्राप्त कर लें. पहले से ही इस बात को सुनिश्चित करें कि आपातकाल की स्थिति में आप क्या करेंगे और सभी बच कर निकलने के संभावित रास्तों की पहचान कर लें.
  • पत्रकारों से प्रदर्शन की जगह पर अकेले काम करने की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए. कोशिश करें कि आप अपने किसी सहकर्मी के साथ काम करें. इसके अलावा अपने काम के अड्डे, परिवार एवं दोस्तों से बात करने और समय-समय पर खबर देने की एक प्रक्रिया बना लें. दिन ढ़लने के पश्चात जोखिम बढ़ जाता है, इसलिए अँधेरे में काम करने से बचें. इस पर और अधिक जानकारी के लिए सीपीजे  की अकेले रिपोर्टिंग करते पत्रकारों के लिए सलाह गाइड पढ़ें.
  • अगर आपको इस्तेमाल करना आता है तो अपने साथ एक मेडिकल किट ले जाएं. यह भी सुनिश्चित करें कि आपके फ़ोन की बैटरी पूरी तरह चार्ज है.
  • ढ़ीले कपड़े, राजनीतिक नारे लिखे कपड़े, मीडिया से जुड़े चिन्ह, फ़ौजी स्वरुप वाले कपड़े, किसी राजनीतिक पार्टी विशेष से जुड़े रंग अथवा जल्द आग पकड़ने वाले कपड़े (जैसे कि नायलॉन) इत्यादि पहनने से बचें.
  • सख़्त तले, फ़ीते और टख़ने को सहारा देने वाले जूते पहनें.
  • यदि आपके बाल लम्बे हैं तो उन्हें बाँध लें. ऐसा न करने पर बालों को पीछे से खीचें जाने का ख़तरा  बना रहता है.
  • अपने साथ कम से कम मूल्यवान वस्तुएं ले जाएं. अपना कोई भी उपकरण अपने वाहन में ना छोड़ें क्योंकि चोरी का खतरा बना रहता है, खास कर अँधेरा होने के बाद.

जागरूकता एवं स्थिति निर्धारण:

  • अपनी स्थिति का हमेशा ध्यान रखें और अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर नज़र बनाए रखें. अगर हो सके तो ऊंचाई वाली जगह पर रहें जिससे आपको आस-पास देखने में सुविधा हो और आपकी सुरक्षा बनी रहे.
  • हमेशा बाहर निकलने के रास्ते की अच्छे से समीक्षा करें. यदि आप और लोगों के साथ हैं तो एक मिलने की जगह निर्धारित कर लें.
  • अपने नज़दीकी चिकित्सा सहायता के बारे में पता करें.
  • भीड़ के बीच काम करने की स्थिति में हमेशा एक रणनीति बना कर रखें. हमेशा भीड़ के दायरे से बाहर रहें और अंदर जाने से बचें जहाँ से आपका निकलना मुश्किल हो सकता है.
  • लगातार अधिकारियों का भीड़ के प्रति बर्ताव देखते रहें. पुलिस भीड़ के उग्र होने पर बहुत सख्त हो सकती है, वहीं भीड़ भी पुलिस की ज़्यादा सख्ती दिखने पर भड़क सकती है. पुलिस का दंगा नियंत्रण पोशाक में होना या फिर पथराव जैसी परिस्थितियां  बिगड़ते हालात का अंदेशा दे सकती हैं. ऐसी परिस्थिति में स्वयं को उस जगह से निकालें और सुरक्षित स्थान पर पहुंचे.
  • फ़ोटो पत्रकारों को हिंसा और तनावपूर्ण परिस्थितियों के नज़दीक जाकर काम करना पड़ता है जिसके कारण वह अधिक जोखिम में होते हैं. फ़ोटोग्राफ़र्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई साथी उनके आस-पास ही है जो उन्हें चेता सके एवं उन्हें निरंतर अपने कैमरे से बाहर भी देखते रहना चाहिए. गला घुटने से बचने के लिए फ़ोटोग्राफर्स को गले में पट्टा नहीं पहनना चाहिए. फ़ोटो पत्रकार  के लिए जोखिम से दूर रह कर काम करना मुमकिन नहीं होता है, इसलिए उन्हें भीड़ के बीच ज़्यादा समय बिताने से बचना चाहिए. तस्वीरें खींचें और बाहर निकल आएं.
  • सभी पत्रकारों को  भीड़ में ज़रुरत से ज़्यादा रुकने से बचना चाहिए, ख़ास तौर पर  ऐसी भीड़ जो जल्द ही उग्र हो सकती हो.

पुलिस द्वारा आँसू गैस इस्तेमाल किये जाने की स्थिति में :

आँसू गैस के इस्तेमाल से खांसी, छींक, थूक निकलना, आँसू निकलना और बलगम से साँस लेने में तकलीफ़ होती है. कई बार इसके संपर्क में से उलटी आना और साँस लेने में मुश्किल होने जैसी समस्या भी हो सकती है. यह लक्षण हवा में मौजूद कोविड-19 वायरस की बूदों से एक मीडिया कर्मचारी को होने वाले खतरे को कई गुना बढ़ा देते हैं. ऐसे लोग जिन्हें सांस से जुड़ी बीमारी जैसे कि दमा की शिकायत हो या फिर वह कोविड-19 संक्रमण के ज़्यादा जोखिम वाली श्रेणी में आते हों, उन्हें ऐसी जगह जहाँ ऑंसू गैस चलने का खतरा हो, वहाँ जाने से बचना चाहिए.

NPR (एनपीआर ) द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, ऑंसू गैस कोरोना वायरस जैसे रोगजनक़ों से होने वाले संक्रमण की संभावना को कई गुना बढ़ा देती है.

आँसू गैस के असर और उपचार से जुड़ी और अधिक जानकारी के लिए सीपीजे की सिविल डिसऑर्डर एडवाइजरी पढ़ें.

शारीरिक हमला:

प्रदर्शनकारियों द्वारा पत्रकारों पर हमले की घटनाएं भारत में पहले हो चुकी हैं एवं अक्टूबर 2021 में, स्थानीय किसानों के विरोध प्रदर्शन जो हिंसक हो गया था, वहाँ समाचार संकलन करते समय लगी चोटों से  स्वतंत्र पत्रकार  रमन कश्यप की मौत का सीपीजे ने दस्तावेजीकरण किया।

जब भी आप ऐसी परिस्थिति में हों जहाँ आप पर शारीरिक हमला हो सकता हो तो इन बातों का ध्यान रखें:

  • किसी भी प्रदर्शन के स्थान पर जाते समय प्रदर्शनकारियों के पत्रकारों के प्रति बर्ताव पर ध्यान दें. ऐसे लोग जो आप पर हमला कर सकते हैं, उनको लेकर ख़ास सचेत रहें.
  • किसी भी संभावित हमलावर की शारीरिक भाषा पर ध्यान दें और अपनी शारीरिक भाषा से परिस्थिति को सामान्य बनाने का प्रयास करें.
  • हमलावर की आँखों में आँखें डाल कर बात करें, खुले हाथों का इस्तेमाल करके बात करें और धीरज बनाए रखें.
  • संभावित हमलावर से एक हाथ की दूरी बनाए रखें और पकडे जाने की स्थिति में बिना आक्रोश किये, अपने-आप को ढृढ़ता से छुड़ाएं और पीछे हट जाएं. यदि आपका घेराव हो जाता है तो बेहिचक मदद के लिए चिल्लाएं.
  • अगर हमला बढ़ता है तो एक हाथ से अपने सर का बचाव करें और छोटे क़दमों से पीछे हटें ताकि आप ज़मीन पर गिरने से बच सकें. अगर आप अपने साथियों के साथ हैं तो झुंड बना लें और एक दूसरे के हाथों को कस कर पकड़ लें.
  • हालांकि हमलावर का बर्ताव रिकॉर्ड करना भी पत्रकार का काम होता है, परन्तु अपनी स्थिति और सुरक्षा का पहले ध्यान रखें. हमलावरों की तसवीरें लेने से मामला और बिगड़ सकता है.
  • अगर आपसे हमलावर कुछ मांगता है तो उसे वह दे दें, आपके उपकरण की कीमत आपकी जान से ज़्यादा नहीं हैं.

10 जनवरी, 2022 को  राज्य विधानसभा चुनाव से ठीक पहले,भारत के अमृतसर में एक बाजार क्षेत्र में गश्त लगाते हुए अर्धसैनिक बल के जवान और पंजाब पुलिस के जवान। (एएफपी/ नरिन्दर नानू)

शारीरिक सुरक्षा: आक्रामक समुदाय के बीच से रिपोर्टिंग

पत्रकारों को कई बार ऐसे इलाकों और समुदाय के बीच से रिपोर्टिंग करने होती है जोकि बाहर से आने वालों और मीडिया के प्रति आक्रामक होते हैं. ऐसा तब हो सकता है जब उस समुदाय को ऐसा लगे कि मीडिया उनके पक्ष को सामने नहीं रख रही है या फिर उनपर रिपोर्टिंग अनुचित तरीके से कर रही है. चुनाव के समय पत्रकारों को लम्बे समय तक मीडिया के प्रति आक्रामक समुदाय के बीच काम करना पड़ सकता है.

खतरे को कम करने हेतु:

  • अगर हो सके तो पहले से ही समुदाय के विचारों और बर्ताव के बारे में जाने. उनका मीडिया के प्रति बर्ताव समझने का प्रयास करें और ज़रुरत हो तो अति सामान्य हाव भाव बना कर चलें.
  • समुदाय के बीच अपनी पहुँच बनाने का प्रयास करें. बिना निमंत्रण कहीं जाने से मामला बिगड़ सकता है. अगर आप उस इलाके को नहीं जानते हैं तो कोशिश करें कि स्थानीय लोगों में से कोई आपकी सहायता कर सके.
  • किसी स्थानीय लीडर या समुदाय में अच्छी प्रतिष्ठा वाले इंसान के साथ संपर्क बनाएं जो आपके साथ जा सके और आपकी मदद कर सके. ऐसे किसी प्रभावशाली इंसान से संपर्क बनाएं जो आपातकाल में आपकी सहायता कर सके.
  • अगर समुदाय में शराब और ड्रग्स का सेवन होता है तो याद रखें की परिस्थितियां  विपरीत होने की संभावनाएं और भी बढ़ जाती हैं.
  • आदर्श परिस्थिति  यह होगी कि आप टीम के रूप में संयुक्त रूप से काम करें या फिर बैकअप टीम रखें. यह लोग काम की जगह से कुछ दूरी पर किसी मॉल या पेट्रोल पम्प पर रह सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर मदद के लिए आ सकते हैं.
  • अपने काम की जगह के भूगोल का ध्यान रखें और उसके अनुसार रणनीति बनाएं. अगर खतरा बहुत अधिक हो तो सुरक्षाबल के उपयोग के बारे में विचार करें. किसी एक स्थानीय इंसान के साथ होने से वह हालात को भाँप सकता है जब आप अपना काम कर रहे हों और बदलती स्थिति पर ध्यान न दे सकते हों.
  • अपने वाहन को चलने की स्थिति  में ड्राइवर के साथ तैयार रखें.
  • यदि आपको अपने वाहन से दूर रह कर काम करना पड़े तो वाहन तक पहुँचने का तरीका और रास्ता याद रखें. आस-पास के पहचान चिन्हों को याद रखें और अपने साथियों को भी बताएं.
  • चिकित्सा से जुड़ी आपदा के मामले में पता करें कि  नज़दीकी चिकित्सा सेवा कहाँ से मिल सकती है और उक्त स्थान या इलाके से बाहर निकलने की एक रणनीति बना कर रखें.
  • तस्वीर लेते समय या फिर वीडियो बनाते समय लोगों की सहमति ज़रूर लें, ख़ासकर अगर आपको  आसानी से बाहर निकलने के  रास्ता का अंदाजा या जानकारी नहीं है.
  • अपना काम हो जाने पर बेवजह वहां ना घूमें. यह हमेशा बेहतर होता है कि काम पूरा करने के लिये  समय बाध्यता हो और उसी समय पर  वहां से  निकल लिया जाए. यदि कोई सहकर्मी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है तो बहस न करें, तुरंत वहां से निकल जाएं.
  • कपड़े बिना मीडिया लोगो वाले  पहनें जो कि जगह के अनुकूल हों. अपने वाहन एवं उपकरणों से मीडिया के चिन्ह आवश्यकता पड़ने पर हटा दें.
  • अगर आप इस्तेमाल करना जानते हैं तो अपने साथ एक मेडिकल जरूर किट ले जाएं।
  •  किसी भी व्यक्ति के विचारों और सोच के प्रति आदर भाव बना कर  रखें.
  • अपने साथ कम से कम कीमती सामान और पैसे ले कर जाएं. यह सोचें कि क्या चोर आपके उपकरण से आकर्षित होंगे? यदि आपको पकड़ लिया जाता है लूटने के कोशिश होती है तो बिना लड़े अपने उपकरण दे दें, आपका जीवन उपकरण से ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं है.
  • रात को ऐसी जगहों पर काम करने से बचें, ऐसे में खतरा कई गुना बढ़ जाता है.
  • अपने काम के प्रकाशित होने से पहले यह सोचें कि क्या आपको दोबारा उस स्थान पर आना पड़ सकता है? क्या आपकी कहानी या समाचार से आपकी उक्त समुदाय के बीच पहुँच पर असर पड़ेगा?