उत्तर प्रदेश में अधिकारियों ने पत्रकार सुप्रिया शर्मा की जांच शुरू की है। (फोटो: स्क्रॉल.इन)

उत्तर प्रदेश पुलिस ने पत्रकार सुप्रिया शर्मा की COVID-19 से सबंधित समाचार संकलन के एक मामले की जांच शुरू की।

नयी दिल्ली, जून १८, २०२० — उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों को पत्रकार सुप्रिया शर्मा पर की जा रही आपराधिक जाँच को तुरंत बंद कर देना चाहिये। इसके साथ ही अपनी पत्रकारीय जिम्मेदारी का निर्वाहन कर रहे प्रेस के सदस्यों एवं पत्रकारों को को कानूनी रूप से परेशान करना बंद करना चाहिये।  उपरोक्त आधिकारिक बयान आज कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स द्वारा आज वरिष्ठ पत्रकार एवं स्क्रॉल.इन वेबसाईट में बतौर कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा पर उनके द्वारा लिखे गये एक समाचार के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा किये गये एफआईआर के बाद देर शाम आज जारी किया गया। 

स्क्रॉल.इन और इस मामले से सबंधित अन्य समाचार रिपोर्टों के अनुसार, 13 जून को, वाराणसी पुलिस ने स्क्रॉल.इन न्यूज़ वेबसाइट की कार्यकारी संपादक, सुश्री  सुप्रिया शर्मा पर  जो मामला दर्ज किया है उसके मुताबिक़ उन पर एक तरफ मानहानि के आरोप हैं वहीँ दूसरी तरफ उन पर लापरवाही बरतने के भी आरोप लगे हैं  जिसके कारण कोरोना वायरस और फ़ैल सकता है। 

सुप्रिया शर्मा द्वारा दिनांक 8 जून को लिखे गये एक समाचार के अनुसार जांच की गई थी, उक्त रिपोर्ट रूपी लेख में यह आरोप लगाया गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में उनके द्वारा गोद लिये गये एक गाँव डोमरी के निवासी, COVID-19 के दौरान हुए लॉकडाउन के दौरान भूखे रह गए थे।

उस लेख में केस स्टडी के रूप में उल्लिखित डोमरी गाँव की निवासिनी एक स्थानीय महिला माला देवी द्वारा स्थानीय पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवायी गयी है, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि स्क्रॉल.इन ने उसकी टिप्पणी को गलत तरीके से प्रस्तुत किया, शिकायत की एक प्रतिलिपि की सीपीजे ने भी समीक्षा की है। गौरतलब है सुप्रिया द्वारा लिखे गये उक्त समाचार में डोमरी गाँव के कई अन्य निवासियों के भी बयान लिये गये थे।

न्यूयॉर्क में एशिया महाद्वीप के लिये कार्यरत CPJ की वरिष्ठ शोधकर्ता, आलिया इफ्तिखार ने कहा, “प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में अपने काम को ईमानदारी से निर्वाह करने के लिये के  एक पत्रकार के ऊपर जांच शुरू करना स्पष्ट रूप से डराने की रणनीति है और देश भर के पत्रकारों के लिए यह मामला एक हाड़ कँपा देने वाले सन्देश सरीखा है।” आलिया ने यह भी कहा कि “उत्तर प्रदेश पुलिस को शीघ्र  सुप्रिया शर्मा पर हो रही जाँच को बंद कर देना चाहिये।  उन्होंने उक्त समाचार को लिख कर कोई अपराध नहीं किया है और वे केवल एक पत्रकार के रूप में अपना काम कर रही थीं।”

स्क्रॉल.इन के अनुसार, उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कानून के कथित उल्लंघन के इस मामले के लिये सुप्रिया शर्मा की जांच की जा रही है; यदि उन पर आरोप सिद्ध हो जाते हैं तो तो वह जमानत के लिये अयोग्य होंगी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कानून के मामले में दोषी पाये जाने पर उन्हें पांच साल तक की सजा हो सकती है।  मानहानि का दोषी पाये जाने पर, उन्हें दो  वर्ष तक की जेल  और आर्थिक जुर्माना भी हो सकता है; पुलिस का यह भी मानना है कि ऐसी खबरों से कोरोनावायरस और फैल सकता है और इस सूरत में अगर उन पर असावधानी बरतने और  COVID-19 को फैलाने में लापरवाही करने का दोषी पाया जाता है, तो उस स्थिति में उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत अतिरिक्त जुर्माना और छह महीने तक की जेल भी हो सकती है।

स्क्रॉल.इन द्वारा आज जारी किये गये एक आधिकारिक बयान में यह स्पष्ट किया गया है कि उनका संस्थान सुप्रिया शर्मा द्वारा लिखे गये समाचार के पक्ष में खड़ा है।  बयान में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया गया है  कि यह  जांच वास्तव में “स्वतंत्र पत्रकारिता को डराने और चुप करवाने का एक प्रयास है, जो कोविद -19 के दौरान हुए लॉकडाउन के दौरान कमजोर समूहों की स्थितियों पर समाचार एवं लेख लिख रहे हैं।”

CPJ ने COVID-19 महामारी के दौरान भारत में पत्रकारों पर हो रही पुलिस जांच के ढेर सारे अन्य मामलों का भी दस्तावेजीकरण किया है, खास तौर पर उत्तर प्रदेश राज्य में भी, जिसमें वाराणसी भी शामिल है।

CPJ ने इस मामले पर टिप्पणी करने के लिये वाराणसी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को ईमेल सन्देश भी भेजा है, लेकिन उनके द्वारा अब तक कोई जवाब नहीं प्राप्त हुआ है। सीपीजे ने उक्त एफआईआर की शिकायतकर्ता माला देवी से भी संपर्क करने की चेष्टा की गयी लेकिन यह समाचार लिखे जाने तक उनके बारे में कोई जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी है।