वर्ष 2019 के मार्च महीने में अहमदाबाद के क़रीब एक कारीगर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के झंडे और चुनाव अभियान से संबंधित अन्य सामग्रियों को सुखाते हुए. याद रहे कि साल 2019 में 11 अप्रैल से 19 मई के बीच भारत में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए थे (एएफपी / सैम पैंथकी).

भारत में चुनाव: पत्रकारों की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश

सीपीजे की इमर्जेंसी रिस्पॉन्स टीम ने चुनावी गतिवीधियों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के लिए ऐसे दिशा-निर्देशों की एक सूची तैयार की है जिन्हें ध्यान में रखते हुए वे ख़ुद को सुरक्षित रख सकते हैं. इस सूची में संपादकों, पत्रकारों और फोटो पत्रकारों के लिए ऐसी सूचनाएं दी गई हैं जिनकी रोशनी में वे चुनाव के दिनों की तैयारी कर सकते हैं और सोशल मीडिया पर या फिर शारीरिक और मानसिक तौर पर उत्पीड़न की संभावनाओं को कम कर सकते हैं.

ज़रूरत पड़ने पर पत्रकार सीपीजे के इमरजेंसी रिस्पांस प्रोग्राम से संपर्क कर सकते हैं. वह [email protected] पर आलिया इफ्तिखार के द्वारा सीपीजे के एशिया प्रोग्राम से भी संपर्क कर सकते हैं. इसके अलावा भारत में सीपीजे के प्रतिनिधि कुणाल मजूमदार से संपर्क करने के लिए [email protected] पर मेल कर सकते हैं.

सीपीजे की जनरलिस्ट सिक्योरिटी गाइड (Journalist Security Guide) में कुछ ऐसी विशेष जानकारियां दी गई हैं जिसकी रोशनी में संभावित खतरों का अंदाजा लगाने और उनसे बचने की तैयारी करने में मदद मिल सकती है. इसके अलावा सीपीजे रिसोर्स सेंटर (CPJ Resource Centre) पर फील्ड पर जाने से पहले की तैयारी से संबंधित अतिरिक्त जानकारियां मुहैया की गई हैं. साथ ही रिसोर्स सेंटर पर पत्रकारों के लिए अनहोनी घटनाओं के बाद मदद हासिल करने के बारे में भी जानकारी मौजूद है.

कोरोनावायरस के प्रकोप का कवरेज

चुनावी गतिविधियों के दौरान, मीडियाकर्मी अक्सर अधिक भीड़-भाड़ वाली जगहों जैसे रैली, चुनाव से संबंधित कार्यक्रम और धरना प्रदर्शन के पास जाकर रिपोर्टिंग करते हैं. इस तरह के स्थान पर, यह संभावित है की शारीरिक दूरी से संबंधित सुरक्षा उपायों का पालन ना हो पाए, जिसकी वजह से वहां पर किसी व्यक्ति के कोविड-19 से प्रभावित होने के की संभावना बढ़ जाती है.

ऐसे व्यक्ति जो कोविड-19 के सनवेदनशील वर्ग में आते हैं या संवेदनशील व्यक्तियों के साथ रहते हैं उन्हें इस तरह की जगह पर रिपोर्टिंग करने से संबंधित आशंकाओं पर विचार विमर्श करना चाहिए और [अपने सहयोगियों के साथ] इस विषय पर चर्चा करनी चाहिए. मीडियाकर्मियों को ऐसे व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिए जिन्हें खांसी या छींक आ सकती हो [चाहे जानबूझकर या अचानक]. उन्हें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अधिकारियों द्वारा आंसू गैस और/या काली मिर्च स्प्रे का इस्तेमाल किए जाने पर बड़ी मात्रा में वायरस के की बूंदे हवा में फैल सकती हैं. प्रासंगिक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण अपने साथ ले जाने पर विचार करना चाहिए और यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि आप अपने हाथ नियमित तौर पर अच्छी तरह से धोते रहें, अपने चेहरे को छूने से बचें और अपने उपकरण की सफाई करें.

कोविड-19 और रिपोर्टिंग से संबंधित और अधिक विस्तृत सुरक्षा सलाह के लिए कृपया सीपीजे की सुरक्षा एडवाइज़री को पढ़ें.

एडीटर कौनसी बातों का ख़्याल रखें?

चुनावों के दौरान एडिटर या न्यूज़ रूम में बैठे लोगों की तरफ से रिपोर्टरों को बहुत कम समय में कुछ घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए कहा जा सकता है. इस स्थिति के लिए इस सूची में कुछ ऐसे सवाल और तरीके बताए गए हैं जिनको ध्यान में रखते संभावित खतरों से बचा जा सकता है.

  • क्या आपका रिपोर्टर या टीम में शामिल दूसरे स्टाफ इस काम को करने के लिए जरूरी अनुभव और क्षमता रखते हैं?
  •  क्या आपने इस बात की पुष्टि कर ली है कि उनमें से किसी को कोई बीमारी तो नहीं है जिसके कारण ग्राउंड पर उसे कोई परेशानी का सामना हो सकता है?
  • क्या आप ने सभी स्टाफ के इमरजेंसी नंबरों को अच्छी तरह सेव कर लिया है
  • क्या टीम के पास जरूरी पहचान पत्र मौजूद हैं जैसे प्रेस कार्ड या ऐसा एक लेटर जिसमें ज़िक्र किया गया हो कि यह लोग आपकी संस्था से जुड़े हुए हैं?
  • क्या इस रिपोर्ट की वजह से पैदा होने वाली समस्याओं के बारे में आपने ग़ौर कर लिया है? क्या उन समस्याओं के मुकाबले में इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने के फायदे साफ तौर पर नजर आ रहे हैं?
  • संभावित खतरों और उनसे बचने के तरीकों को यहां लिखें
 
 
  • क्या किसी पत्रकार की अपनी भूमिका या उसकी व्यक्तिगत पहचान के कारण उसे किसी प्रकार के खतरे का सामना करना पड़ सकता है? जैसे महिला पत्रकार या फोटो जर्नलिस्ट जो घटनास्थल से करीब रहकर अपना काम करते हैं. अगर हां तो यहां उसका विवरण दें.
 
  • क्या उनको अपने साथ कुछ विशेष वस्तुएं ले जाने की जरूरत है जैसे बॉडी ऑर्मर, ऑक्सीजन मास्क या मेडिकल किट?
  • क्या टीम के साथ जाने वाली गाड़ी पूरी तरह से सही अवस्था में है?
  • क्या आपने यह तय कर लिया है कि आप अपनी टीम के साथ कैसे संपर्क करेंगे? और क्या यह बात भी तय कर ली गई है कि कहीं पर फंस जाने के बाद वहां से कैसे निकला जा सकता है? अगर हां, तो इन बातों को यहां दर्ज करें.
 
 
  • अगर टीम में किसी को कोई समस्या हो या उसे चोट लग जाए तो इस स्थिति से निपटने के लिए आपने चिकित्सा संबंधित जानकारी हासिल कर ली है?
 
 
  • क्या टीम में शामिल लोगों के पास हेल्थ इंश्योरेंस है या फिर आपकी तरफ से उनको मेडिकल कवर दिए जाने की कार्यवाही पूरी कर ली गई है? अगर उनमें से कोई ट्रॉमा का शिकार हो जाए और उसका असर ज़्यादा दिनों तक बाकी रहे तो क्या उसके हल के बारे में आपने कुछ सोच लिया है?

संभावित खतरों का अंदाजा लगाने और उससे बचने की तैयारियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए सीपीजे रिसोर्स सेंटर पर जाएं.

डिजिटल सुरक्षा: उत्पीड़न से बचने के लिए किन बुनियादी बातों का ध्यान रखें?

रिपोर्टिंग के लिए ग्राउंड पर जाने से पहले बेहतर यह है कि नीचे दिए गए दिशा-निर्देशओं के अनुसार तैयारी कर लें.

  • रिकॉर्ड किए गए सभी तरह के मैटेरियल को किसी हार्ड ड्राइव में ट्रांसफर कर लें और अपने साथ ले जाने वाले मेमोरी कार्ड या ड्राइव में कोई भी महत्वपूर्ण कंटेंट ना छोड़ें. सभी तरह के अकाउंट और एप्स से लॉगआउट कर लें और अपने मोबाइल और लैपटॉप से ब्राउजिंग हिस्ट्री को डिलीट कर दें. ऐसा करने से लोग आपके ईमेल और सोशल मीडिया अकाउंट्स वगैरह तक नहीं पहुंच पाएंगे.
  • अपने मोबाइल, लैपटॉप या मैकबुक वगैरह में पासवर्ड लगा दें. रिमोट वाइप (Remote wipe) का फंक्शन भी ऑन कर दें. याद रहे कि रिमोट वाइप एक ऐसा सिक्योरिटी फीचर है जिसके द्वारा आप कहीं से भी (किसी दूसरे मोबाइल या कंप्यूटर से) अपने मोबाइल का डेटा डिलीट कर सकते हैं. मोबाइल चोरी होने या पुलिस के द्वारा ज़ब्त किए जाने की स्थिति में ऐसा करने की ज़रूरत पड़ सकती है.
  • अपने साथ कम से कम तकनीकी डिवाइस जैसे मोबाइल, कैमरा, हार्ड ड्राइव, इत्यादि ले जाएं और अगर आपके पास अतिरिक्त डिवाइस मौजूद हो तो उनको ही लेकर जाएं, ना कि व्यक्तिगत या कंपनी के डिवाइस.

डिजिटल सुरक्षा: इंटरनेट पर बॉट को कैसे पहचानें?

चुनावी सरगर्मियों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया और दूसरे प्लेटफॉर्म पर मुहिम चलाई जा सकती है. इस तरह की मुहिम के द्वारा पत्रकारों को बदनाम करने की कोशिश की जाती है और उनके कामों से लोगों का भरोसा खत्म करने की चेष्टा की जाती है. इस तरह की मुहिम किसके द्वारा छेड़ी जाती है? और उसका असली जिम्मेदार कौन होता है? इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है. इस मुहिम में इंसानों के अलावा कंप्यूटर बॉट (Bot) भी शामिल होते हैं. बॉट ऐसे अकाउंट्स होते हैं जिनको इंसान नहीं बल्कि कंप्यूटर ही चलाता है. बॉट सोशल मीडिया पर इंसानों के तौर तरीकों से सीखता है और फिर वह उन्हीं की तरह ग़लत बयानी और प्रोपेगंडा करता है. इस तरह की स्थिति में इंसानी और बॉट अकाउंट के बीच फर्क करने से पत्रकारों की मदद हो सकती है. उनको कई तरह के अकाउंट से धमकियां दी जाती हैं तो अगर वह बॉट और असली अकाउंट्स के बीच फर्क़ कर लें तो वह इस बात का पता लगा सकते हैं कि धमकी देने वाला कोई असली इंसान है या कोई बॉट अकाउंट है जिसके पीछे सिर्फ एक कंप्यूटर है.

बॉट को पहचानने के लिए क्या करें?

  • जिन सोशल मीडिया अकाउंट्स के द्वारा आपको परेशान किया जा रहा है, उसकी जांच परख कीजिए और यह देखिए के वह एकाउंट्स कब बनाए गए हैं. ऐसा कोई अकाउंट जो पिछले कुछ दिनों के अंदर बनाया गया है या फिर पिछले दिनों में ही उससे चीजें या सामग्रियां पोस्ट की जानी शुरू हुई हैं तो वह बॉट अकाउंट हो सकता है.
  • यह चेक करें कि उस अकाउंट में क्या डिटेल्स दी गई हैं. यह देखें कि उसमें अकाउंट चलाने वाले की लोकेशन या फिर जन्मतिथि जैसी कोई जानकारी दी गई है या नहीं. अगर इस तरह की मूलभूत जानकारियां नहीं दी गई हैं तो इसका मतलब यह हो सकता है कि वह एक बॉट अकाउंट है.
  • फर्जी अकाउंट में आमतौर पर उसे चलाने वाले की कोई असली तस्वीर नहीं लगी होती है. उनमें स्टॉक इमेजेज़ या दूसरे फेक अकाउंट्स से लेकर फोटो लगा दिए जाते हैं. ऐसी स्थिति में पत्रकार उनके फोटो को गूगल पर डालकर यह देख सकते हैं कि वह फोटो और कहां-कहां इस्तेमाल किया गया है.
  • यह देखें कि उस अकाउंट से किस तरह की बातें पोस्ट की गई हैं. अगर उस अकाउंट से ज़्यादातर रिट्वीट किए जा रहे हैं या फिर सिर्फ हेडलाइन या लिंक देकर दूसरों के पोस्ट ट्वीट किए जा रहे हैं तो वह अकाउंट फर्जी हो सकता है. यह भी ध्यान में रहे कि बॉट किसी से बातचीत की प्रक्रिया को अंजाम नहीं दे सकता है.
  • अगर उस अकाउंट के फॉलोअर्स कम हैं तो इस बात की संभावना ज़्यादा है कि वह बॉट अकाउंट हो. अगर किसी अकाउंट के फॉलोअर्स कम हैं लेकिन उसकी पोस्ट पर लाइक और रिट्वीट ज़्यादा हैं तो इस स्तिथि में भी वह बॉट हो सकता है. यह देखें कि संदिग्ध बॉट को किस तरह के अकाउंट के द्वारा फॉलो किया जा रहा है और उनके द्वारा किस तरह की बातें शेयर की जा रही हैं. बहुत सारे बॉट एकाउंट्स के द्वारा एक ही समय में एक तरह की पोस्ट को शेयर किया जाता है.
  • अकाउंट का नाम और टि्वटर हैंडल (जो @ से शुरू होता है( को मिलाकर देखें. अगर नाम और हैंडल एक दूसरे से नहीं मिलते हैं तो वह अकाउंट फर्जी हो सकता है.
  • पत्रकार चाहें तो ऐसे बॉट अकाउंट्स को ब्लॉक या म्यूट कर सकते हैं जिनके द्वारा उनको परेशान किया जाता है. साथ ही यह भी बेहतर है कि वह इस तरह के अकाउंट्स को रिपोर्ट करें. रिपोर्ट करते समय धमकी भरे पोस्ट या कमेंट और अकाउंट के स्क्रीनशॉट भी सोशल मीडिया कंपनी के हवाले कर सकते हैं. अगर आगे चलकर आप इस मामले में अदालत जाते हैं तो सोशल मीडिया पर दर्ज यह रिपोर्ट आपके काम आ सकती है.

डिजिटल सुरक्षा: इंटरनेट पर होने वाली ट्रोलिंग से कैसे बचें?

चुनाव के दिनों में ऑनलाइन ट्रोलिंग बढ़ सकती है. सीपीजे के संज्ञान में ऐसी कई महिला पत्रकार हैं जिनके साथ भारत में ऑनलाइन ट्रोलिंग और उत्पीड़न किए जाने के मामले सामने आ चुके हैं. इसलिए एक पत्रकार के लिए जरूरी है कि वह अपने अकाउंट्स की जांच परख करते रहें और यह अंदाजा लगाने की कोशिश करते रहें कि कब ऑनलाइन धमकी वास्तविक हमले की शक्ल में बदल सकती है.

इस तरह के खतरों से बचने के लिए:

  • अपने अकाउंट्स में लंबे और मजबूत पासवर्ड सेट करें. प्रत्येक अकाउंट के लिए अलग-अलग पासवर्ड रखें और एक पासवर्ड 6 से 8 शब्दों पर आधारित हो. अकाउंट हैक किए जाने से बचने के लिए पासवर्ड मैनेजर का प्रयोग करें.
  • अपने अकाउंट में टू फैक्टर ऑथेंटिकेशन (2FA) को ऑन कर दें.
  • अपने अकाउंट की प्राइवेसी सेटिंग को दोबारा चेक करें और वहां से मोबाइल नंबर और जन्मतिथि जैसी व्यक्तिग जानकारियों को हटा दें. इसके अलावा प्राइवेसी सेटिंग को लॉक भी कर दें.
  • अपने अकाउंट्स को एक बार पूरी तरह से खंगाल कर देख लें. अगर वहां कोई तस्वीर या ऐसी कोई दूसरी सामग्री मौजूद हो जिसके द्वारा आपको बदनाम किया जा सकता है तो उसको जरूर हटा दें. ट्रोल्स अक्सर किसी तस्वीर वगैरह को लेकर बदनाम करने की कोशिश करते हैं.
  • सोशल मीडिया कंपनी की तरफ से अपना अकाउंट वेरीफाई करा लें. वेरीफाई होने के बाद आपके नाम के सामने एक ब्लू निशान लग जाता है. इससे पता चलता है कि यह आपका असली अकाउंट है. इस तरह आप के नाम पर बनाए गए फर्जी अकाउंट और आपके असली अकाउंट में फर्क किया जा सकता है.
  • अपने अकाउंट का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और अपने खिलाफ बढ़ रही ट्रोलिंग का पता लगाएं. उनमें ऐसे इशारों और निशानियां पर भी ध्यान दें जिनसे पता लगे कि किस समय ऑनलाइन धमकी की वजह से वास्तव में आप पर हमला हो सकता है. यह बात ध्यान में रखें कि कुछ विशेष प्रकार की रिपोर्ट की वजह से उत्पीड़न किए जाने की संभावनाएं ज़्यादा होती हैं.
  • आमतौर पर ट्रोल्स ऐसा भी करते हैं कि वह पत्रकारों के दोस्तों और रिश्तेदारों के अकाउंट से उनके बारे में जानकारी जुटाते हैं. इसलिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर पेश आने वाली घटनाओं का जिक्र अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से करें और उन्हें अपने अकाउंट से आपकी अपलोड की हुई तस्वीरों को हटाने के लिए कहें.
  • आप अपने मीडिया संस्थान से बात करें और ऑनलाइन उत्पीड़न के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए प्लान तैयार करें.

ऑनलाइन ट्रोलिंग के समय आप क्या करें?

  • ट्रोल्स के साथ बातचीत ना बढ़ाएं. क्योंकि इस तरह मामला और खराब हो सकता है.
  • यह पता लगाने की कोशिश करें कि इस ऑनलाइन हमले के पीछे किसका हाथ है और उसका उद्देश्य क्या है? याद रहे कि आपकी किसी हालिया रिपोर्ट की वजह से इस प्रकार की ट्रोलिंग शुरू की जा सकती है. ऑनलाइन की जाने वाली बदज़ुबानी और धमकी के खिलाफ सोशल मीडिया कंपनी को रिपोर्ट करें. आप के खिलाफ शेयर किए गए फोटो, पोस्ट और कमेंट की डिटेल भी उस रिपोर्ट में दर्ज करें. इसके  साथ यह भी स्पष्ट कर दें कि किस अकाउंट से, किस वक़्त और किस दिन ट्रोलिंग की गई.
  • ऐसे संकेत पर ध्यान देंते रहें जिनसे पता चलता हो कि आपका अकाउंट हैक हो सकता है. यह सुनिश्चित कर लें कि आपके अकाउंट में कोई लंबा और मज़बूत पासवर्ड लगा हुआ है और टू फैक्टर ऑथेंटिकेशन ऑन है.
  • आमतौर पर वह लोग आपकी फैमिली या फिर कंपनी के पास आपके बारे में कुछ नकारात्मक जानकारी या कोई तस्वीर भेजते हैं ताकि उनकी नजर में आप बदनाम हो जाएं. इसलिए आप अपनी फैमिली, अपने कर्मचारियों और दोस्तों को भी यह बता कर रखें कि आपका ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उत्पीड़न किया जा रहा है.
  • आप ऐसे अकाउंट को म्यूट या ब्लॉक कर सकते हैं जिनके द्वारा आपको परेशान किया जा रहा है. आप उनके खिलाफ सोशल मीडिया कंपनियों में रिपोर्ट भी कर सकते हैं. रिपोर्ट करने के बाद उसका रिकॉर्ड अपने पास  ज़रूर सुरक्षित रखें.
  • ऐसे कमेंट पर ध्यान दें जिनसे यह इशारा मिलता हो कि ऑनलाइन मिलने वाली धमकी सच साबित हो सकती है. खासतौर पर जब आपका पता शेयर कर दिया जाए और दूसरों को आप पर हमला करने के लिए कहा जाए तो उस समय समझ लीजिए कि आपके ऊपर हमला होने की बहुत संभावनाएं हैं.
  • इस तरह के हालात हों तो आप ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से अलग हो जाएं और जब डराने धमकाने का सिलसिला थम जाए तो सोशल मीडिया का इस्तेमाल शुरू करें.
  • ऑनलाइन उत्पीड़न किए जाने के बाद आप खुद को अकेला महसूस कर सकते हैं. इससे निपटने के लिए आप अपने पास एक सपोर्ट नेटवर्क तैयार कर लें. बेहतर यह होगा कि इस बारे में आप अपनी कंपनी का सहारा लें.

डिजिटल सुरक्षा: अपने ज़रूरी मैटेरियल को कैसे सुरक्षित रखें?

एक पत्रकार के मोबाइल, लैपटॉप, मैकबुक और कैमरे वगैरह में कई महत्वपूर्ण और खुफिया क़िस्म के मैटेरियल होते हैं. इस स्थिति में अगर वह कभी गिरफ्तार हो जाता है तो उसके मोबाइल और अन्य वस्तुओं को ज़ब्त करके उनकी तलाशी ली जा सकती है. इसलिए जरूरी है कि अपने पेशे से जुड़े मैटेरियल को पुलिस या दूसरे लोगों की निगाह से बचाने के लिए इन बातों पर अमल किया जाए.

नीचे बताए गए तरीकों पर अमल करके आप अपनी महत्वपूर्ण सूचनाओं को सुरक्षित रख सकते हैं.

  • यह चेक करें कि आपके मोबाइल और कमरे इत्यादि में क्या-क्या इंफॉर्मेशन मौजूद हैं. अगर उनमें कोई संवेदनशील इंफॉर्मेशन हो या ऐसी कोई भी चीज़ मिले जिससे आपको कोई खतरा हो सकता है तो आप उसका बैकअप लेकर उसे डिलीट कर दें. यह ध्यान में रखें कि डिलीट किए हुए मैटेरियल या सामग्री को भी दोबारा स्टोर किया जा सकता है. इसलिए सिर्फ डिलीट करने से खतरा नहीं टलता बल्कि यह ज़रूरी होता है कि विशेष कंप्यूटर प्रोग्राम की सहायता से उन्हें अस्थाई रूप से डिलीट किया जाए.
  • मोबाइल के अंदर उसके हार्डवेयर के अलावा, क्लाउड (Google Cloud, iCloud) में भी मैटेरियल मौजूद होते हैं. इसलिए मोबाइल में हार्डवेयर के अलावा गूगल फोटो या आईक्लाउड को भी चेक करें और वहां से भी मैटेरियल को डिलीट करें.
  • इसके अलावा व्हाट्सएप और मैसेंजर जैसे एप्लीकेशंस को भी चेक करें. अगर वहां भी कोई ऐसी इंफॉर्मेशन मिले जिसकी वजह से किसी खतरे की संभावना हो तो उसको सेव करके वहां से डिलीट कर दें. ध्यान रहे कि व्हाट्सएप में सभी तरह के मैटेरियल आईक्लाउड या गूगल ड्राइव वगैरा से जुड़े क्लाउड सर्विस में सुरक्षित होते हैं.
  • यह तय करें कि आपको अपने मैटेरियल का बैकअप कहां रखना है. आप यह खुद ही यह फैसला करें कि क्लाउड, एक्सटर्नल हार्ड ड्राइव या फ्लैश ड्राइव वगैरह में से कहां मटेरियल रखना ज़्यादा उचित होगा.
  • पत्रकारों को अपने मोबाइल, कैमरे और लैपटॉप वगैरह में से अपने मटेरियल का एक बैकअप रखना चाहिए क्योंकि अगर उनके मोबाइल वगैरह को ज़ब्त कर लिया जाता है या यह चोरी हो जाते हैं तो आपके पास जरूरी मैटेरियल मौजूद रहेंगे.
  • यह उचित होगा कि अपने मैटेरियल का बैकअप लेने के बाद उसमें खुफिया लॉक (Encryption) लगा दें. ऐसा करने के लिए आप अपने एक्सटर्नल ड्राइव या फ्लैश ड्राइव में इनस्क्रिप्शन लगा सकते हैं या फिर आप अपने मोबाइल और लैपटॉप वगैरह में भी इनस्क्रिप्शन सेट कर सकते हैं लेकिन ऐसा करने से पहले आप यह जरूर मालूम कर लें कि इनस्क्रिप्शन प्रयोग करने के बारे में आपके देश का कानून क्या कहता है, ताकि उसके प्रयोग से होने वाली किसी भी कानूनी उलझन से सुरक्षित रहा जा सके.
  • अगर आपको शक हो कि आप किसी के निशाने पर हैं या कोई आपका हार्ड ड्राइव चुराने की कोशिश कर रहा है तो आप अपना हार्ड ड्राइव अपने घर में न रखकर कहीं और रखें.
  • अपने मोबाइल और लैपटॉप वगैरह में पिन लॉक लगाकर रखें. जितना बड़ा पिन होगा उसका पता लगाना उतना ही मुश्किल होगा. रिमोट वाइप का प्रयोग करते हुए अपने मोबाइल या कंप्यूटर को लॉक कर दें. अगर पुलिस या प्रशासन की ओर से आपका मोबाइल ज़ब्त कर लिया जाता है या फिर चोरी हो जाता है तो रिमोट वाइप के द्वारा दूर से ही आप अपने उस मोबाइल से मैटेरियल को डिलीट कर सकते हैं. लेकिन यह तभी संभव होगा जब आपके मोबाइल में इंटरनेट चल रहा हो.

शारीरिक सुरक्षा: रैली या धरना प्रदर्शन के दौरान पत्रकार अपनी सुरक्षा कैसे करें?

चुनाव के दिनों में पत्रकार आमतौर से धरना प्रदर्शन, रैली और भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर जाते हैं. ऐसे मौक़े पर उनके साथ छेड़छाड़ या हमले किए जाने की घटनाएं भी सामने आती रहती हैं. सीपीजे की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2018 में हैदराबाद के अंदर तेलुगु भाषा के न्यूज़ चैनल ‘मोजो टीवी’ से जुड़े 2 पत्रकारों पर हमला किया गया था. यह हमला एक दक्षिणपंथी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया था. इसी तरह दक्षिणपंथी पार्टियों के संभावित समर्थकों की ओर से ही एक लाइव शो के दौरान ‘टीवी9 मराठी’ चैनल के कई मीडियाकर्मियों पर भी हमला किया गया था.

राजनीतिक सभाओं और रैलियों के दौरान विभिन्न प्रकार के खतरों से बचने के लिए:

  • यह चेक कर लें कि आपके पास प्रेस कार्ड और अन्य सही कागजात मौजूद हैं. फ्रीलांस पत्रकार अपनी स्टोरी कमीशन करने वाली संस्था की ओर से एक लेटर लिखवा लें. वह प्रेस कार्ड सामने तभी रखें जब उससे कोई समस्या पैदा होने की संभावना न हो. उसे गले में न टांगें बल्कि बेल्ट में लगाकर रखें.
  • भीड़ के मूड का अंदाजा लगाते रहें. अगर संभव हो तो वहां मौजूद दूसरे पत्रकारों को भी भीड़ के मूड को समझने के लिए कहें. ज़रूरत हो तो अपने साथ कोई दूसरा रिपोर्टर या फोटोग्राफर भी ले जाएं.
  • ऐसे कपड़े पहन कर जाएं जिन पर आपकी मीडिया कंपनी का कोई नाम न छपा हो और अगर जरूरत पड़े तो अपनी गाड़ी और दूसरे उपकरणों या सामान से भी अपनी कंपनी का लोगो हटा दें और मजबूत जूते पहन कर जाएं.
  • हालात बिगड़ने के बाद बचकर भागने का कोई उपाय सोच कर रखें. ग्राउंड पर पहुंचने के बाद और रिपोर्टिंग शुरू करने से पहले इस तरह का कोई तरीक़ा सोच लें. अपनी गाड़ी को किसी सुरक्षित जगह पर खड़ी करें या यह सुनिश्चित कर लें कि जरूरत पड़ने पर आपको कोई दूसरी सवारी मिल जाएगी.
  • अगर स्थिति बिगड़ने लगे तो लोगों से सवाल न करें और उस जगह के आसपास न भटके.
  • अगर आप कुछ दूर रह कर उस जगह के बारे में रिपोर्टिंग करना चाहते हैं तो अपने किसी साथी को अपने पास रखें. किसी ऐसी सुरक्षित जगह पर खड़े हों जहां से आप बाहर की तरफ निकल सकते हों. ऐसे रास्ते का जरूर पता लगा लें जहां से आप अपनी गाड़ी या दूसरी सवारी तक सुरक्षित पहुंच सकते हों. अगर हालात खराब होने की ज़्यादा संभावना हो तो आप अपने साथ सिक्योरिटी गार्ड को भी ले जा सकते हैं. इससे ग्राउंड पर आपका समय बचेगा.
  • कार्यक्रम या रैली के दौरान पत्रकारों के लिए बने विशेष एरिया में ही रहें. जब तक बाहर पूरी तरह से शांति और सुकून का माहौल नज़र न आए वहां से न निकलें और यह भी पता कर लें कि वहां पुलिस पत्रकारों की मदद के लिए मौजूद है या नहीं.
  • अगर लोग, राजनेता या दूसरे वक्ता, मीडिया के साथ अच्छे से पेश नहीं आ रहे हैं तो उनकी बदज़ुबानी को बर्दाश्त करने के लिए खुद को तैयार कर लें. ऐसे समय में आप बस अपना काम करें और उनकी बदतमीज़ी का जवाब न दें. भीड़ के साथ ना उलझें. यह हमेशा याद रखें कि आप एक प्रोफेशनल हैं.
  • अगर भीड़ की तरफ से हंगामा होने या पत्थरबाजी वगैरह की उम्मीद हो और आप फिर भी वहां जाकर रिपोर्टिंग करना चाहते हों तो उस समय हुड वाला, वाटरप्रूफ और मजबूत बंप कैप (Bump cap) पहन कर जाएं. अगर स्थिति ज़्यादा गंभीर हो और रिपोर्टिंग का काम पूरा करना ज़्यादा मुश्किल हो जाए तो उस समय ज़्यादा हिम्मत न दिखाएं और वापस हो जाएं. निश्चिंत होकर अपने साथियों और सुपरवाइज़र को वास्तविक स्थिति के बारे में बताएं और उनसे स़ॉरी कह दें.

धरना प्रदर्शन

धरने प्रदर्शनों की रिपोर्टिंग करते समय संभावित खतरों से कैसे बचें?

  • असाइनमेंट की योजना तैयार करें और इस बात की भी पुष्टि कर लें कि आपके मोबाइल फोन की बैटरी पूरी तरह चार्ज है. आप जिस इलाके में जा रहे हैं उसके बारे में जानकारी हासिल कर लें. इस बात की तैयारी पहले से कर लें कि आप किसी आपातकालीन स्थिति में क्या करेंगे.
  • अगर आप प्रयोग करना जानते हों तो मेडिकल किट अपने साथ रख लें.
  • हमेशा अपने कार्यालय के साथी या कलीग के साथ काम करने का प्रयास करें और अपने कार्यालय के साथ निरंतर संपर्क स्थापित रखें, विशेष तौर पर जब आप रैलियों या ज़्यादा भीड़-भाड़ वाले कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग कर रहे हों.
  • ऐसे कपड़े और जूते पहनें जिससे आप तेजी के साथ एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंच सकते हों. ढीले कपड़े पहनकर जाने और गले में पट्टा डालने से भी बचें. साथ ही साथ कोई जल्द आग पकड़ने वाला तत्व (जैसे नायलॉन) भी अपने साथ रखने न रखें. 
  • अपनी पोज़ीशन पर ग़ौर करें. अगर संभव हो तो किसी ऊंची जगह को चुनें ताकि आप सुरक्षित रह सकें.
  • किसी भी जगह पर अगर आप दूसरों के साथ मिलकर काम कर रहे हों तो हमेशा निकलने के रास्ते को नजर में रखें और कोई एक ऐसी जगह तय कर लें जहां आपातकालीन स्थिति में सब लोग एक साथ मिल सकते हों. साथ ही साथ इस बात की भी खबर रखें की मेडिकल सहायता के लिए कौन सी जगह सबसे करीब है.
  • हर वक़्त हालात से बाख़बर रहें और अपने साथ कम से कम कीमती सामान लेकर जाएं. अपनी गाड़ी में कोई ऐसा सामान न छोड़ें जिसके टूट जाने की संभावना हो. अंधेरा होने के बाद आपराधिक खतरों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.
  • अगर किसी भीड़ में काम करना हो तो एक कारगर रणनीति सुनिश्चित करें. भीड़ की जगह से बाहर रहें और बीच में फंसने से बचें जहां से भाग पाना मुश्किल हो. भागने के रास्ते का चयन करें और अगर टीम के साथ मिलकर काम कर रहे हो तो यह तय कर ले कि आपातकालीन स्थिति में किस स्थान पर मिलना है.
  • फोटो पत्रकार आमतौर पर वारदात की जगह से बेहद करीब होते हैं. इस कारण वह ज़्यादा खतरे की चपेट में होते हैं. उनके लिए बेहतर यह होगा कि कोई व्यक्ति पीछे की ओर से उन पर नजर रखे और पत्रकार हर सेकेंड अपने व्यूफाइंडर से बाहर देखते रहें. अपने कैमरे का पट्टा गले में डालने से गला घोंटे जाने का संदेह बना रहता है. इसलिए ऐसा न करें. फोटो पत्रकार के पास अक्सर दूर से काम करने की सहूलियत नहीं होती है, इसलिए वह भीड़ के बीच कम से कम समय व्यतीत करने का प्रयास करें. शॉट क्लिक करें और जल्दी वापस आ जाएं.
  • सभी पत्रकार इस बात का ध्यान रखें कि वह लोगों के द्वारा किए जा रहे स्वागत के चक्कर में ज़्यादा देर तक न फंसे रहें. इसकी वजह से कोई समस्या पैदा हो सकती है.
  • कश्मीर में भारतीय पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए लाइव फायर, रबड़ की गोलियों और पैलेट गनों का प्रयोग किया है. इसको नजर में रखते हुए अपनी सुरक्षा के लिए अपने पास मौजूद उपकरणों का प्रयोग करें. अगर यह उपयुक्त नहीं हो तो पुलिस पर निगाह बनाए रखें. अगर फायरआर्म्स (रायफल, पिस्तोल इत्यादि) दिखाई दें तो सुरक्षित स्थान की तरफ बढ़ें और भगदड़ की स्थिति में बाहर निकलने के आम रास्तों से दूर रहें.

आंसू गैस से निपटते समय संभावित खतरों को कैसे दूर करें

  • व्यक्तिगत सुरक्षा के सामान पहनें जिनमें गैस मास्क, बॉडी आर्मर, हेलमेट और आंखों की सुरक्षा करने वाले चश्मे शामिल हैं.
  • दमा या सांस की बीमारियों से जूझ रहे लोगों को उन इलाकों में जाने से बचना चाहिए जहां आंसू गैस का प्रयोग हो रहा हो. इसी तरह आंखों के लेंस का प्रयोग भी उचित नहीं है. अगर आंसू गैस का भारी मात्रा में प्रयोग हो रहा हो तो ऐसे इलाकों में गैस के भारी मात्रा में बैठ जाने की संभावना होती है जहां हवा का आवागमन न हो.
  • खंभों और फुटपाथ जैसी निशानियां नोट कर लें ताकि उस समय जब आपको देखने में समस्या पैदा हो तो उस इलाके से बाहर निकलने में यह निशानियां आपकी सहायता कर सकें. अगर आप आंसू गैस की चपेट में आ जाएं तो ऊंची जगह की तलाश करने का प्रयास करें और ताजा हवा में खड़े हो जाएं ताकि हवा गैस को दूर ले जा सके. अपनी आंखों या चेहरे को न रगड़ें क्योंकि इससे हालत और बिगड़ सकती है. ठंडे पानी से शावर करें ताकि त्वचा से गैस धुल सके लेकिन स्नान न करें. आंसू गैस के कारण कपड़ों पर क्रिस्टल जम जाते हैं. इसको ख़त्म करने के लिए कपड़े को कई बार धुलने की ज़रूरत पड़ सकती है.

भारत में पत्रकार कई बार प्रदर्शनकारियों के हमलों का शिकार हो चुके हैं, इसलिए जब इस तरह की बर्बरता का सामना हो तो नीचे लिखी बातों को ध्यान में रखें.

  • किसी भीड़ में दाखि़ल होने से पहले (पत्रकारों से संबंधित) प्रदर्शनकारियों के मिज़ाज को भांपने की कोशिश करें. संभावित हमलावरों पर नजर रखें.
  • उग्र प्रदर्शनकारियों की पहचान के लिए उनकी बॉडी लैंग्वेज पर ध्यान दें और स्थिति को सामान्य करने के लिए अपनी बॉडी लैंग्वेज का प्रयोग करें.
  • उग्र व्यक्ति से आंखों का संपर्क बनाए रखें. हाथों के इशारों का प्रयोग करें और शांति के साथ बात करते रहें.
  • खतरे के दौरान अपनी बांहों को खुला रखें. खतरा महसूस हो तो बिना किसी आक्रामकता या उग्रता के मजबूती के साथ पीछे हट जाएं. अगर घेरे में आ जाएं और किसी खतरे में फंस जाएं तो ज़ोर से चिल्लाएं.
  • अगर उग्रता बढ़ती है तो अपने सिर की सुरक्षा के लिए एक हाथ को खाली रखें और गिरने से बचने के लिए छोटे और मजबूत कदमों के साथ चलें. अगर टीम के साथ हों तो सब एक साथ रहें और बाजुओं को जोड़े रखें. बेशुमार मौके ऐसे होते हैं जब आक्रामकता या उग्रता की घटना को रिकॉर्ड करके सामने लाना पत्रकार की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बन जाता है मगर इस दौरान हालात से बाखबर रहना और अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखना भी ज़रूरी है. उग्र लोगों की तस्वीर खींचने से हालात और खराब हो सकते हैं.
  • अगर आपको मजबूर किया जाए तो हमलावर जो भी चाहता है उसके हवाले कर दें. पत्रकारिता से जुड़े उपकरण या सामान आपकी जिंदगी से ज़्यादा कीमती नहीं हैं.

शारीरिक सुरक्षा: विरोधी समुदाय में रिपोर्टिंग करते समय सुरक्षा का ख़्याल कैसे रखें?

पत्रकारों को अक्सर ऐसे इलाकों या समुदायों में रिपोर्टिंग करने की ज़रूरत पड़ती है जो मीडिया या बाहरी लोगों से दुश्मनी रखते हों या ऐसा तब हो सकता है जब किसी समुदाय को यह लगता हो कि मीडिया उनका सही प्रतिनिधित्व नहीं करता है या उनकी नकारात्मक छवि पेश करता है. चुनाव अभियान के दौरान पत्रकारों को मीडिया से दुश्मनी रखने वाले समुदायों के दरमियान लंबे समय तक काम करने की ज़रूरत पड़ सकती है.

इस प्रकार की आशंकाओं को कम करने के लिए

  • अगर संभव हो तो समुदाय और उनके विचारों पर रिसर्च करें. मीडिया के बारे में उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी इसकी समझ पैदा करें और अगर जरूरत हो तो खुद को लो प्रोफाइल व्यक्ति के तौर पर ज़ाहिर करें.
  • ऐसे कपड़े पहन कर जाएं जिस पर आप की मीडिया कंपनी का कोई ब्रांड या लोगो न हो और अगर जरूरी हो तो अपने सामान और गाड़ियों से भी लोगो हटा दें. उचित कपड़े और जूते पहकर जाएं.
  • अगर आप मेडिकल किट इस्तेमाल करना जानते हों तो उसको अपने साथ लेकर जाएं.
  • समुदाय तक सुरक्षित पहुंचें. निमंत्रण के बिना पहुंचने से समस्या उत्पन्न हो सकती है. स्थानीय एजेंट, कम्युनिटी लीडर या किसी रसूख़दार व्यक्ति की सेवाएं हासिल करें या उनकी मंजूरी ले लें. स्थानीय प्रभावशाली और रसूख़दार व्यक्ति की पहचान करें जो आपातकालीन स्थिति में आपकी सहायता कर सकें.
  • हर समय लोगों की एवं उनकी मान्यताओं और आस्थाओं का सम्मान करें.
  • रात के समय काम करने से बचें. इस समय खतरा की आशंका ड्रामाई रूप से बढ़ जाती है.
  • अगर उस समुदाय में शराब या नशीली वस्तुओं का ग़लत सेवन होता हो तो अनहोनी घटनाओं की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.
  • कम से कम मात्रा में कीमती सामान या कैश अपने पास रखें. अगर आपके सामान पर चोरों की नज़र है या अगर वह आपके पास आकर कुछ मांग करते हैं तो वह जो चाहते हैं उनके हवाले कर दें. सामान या उपकरण आपकी जिंदगी से ज़्यादा कीमती नहीं हैं.
  • आदर्श स्थिति यह होगी कि किसी टीम या बैकअप (टीम) के साथ काम करें. खतरे के स्तर पर निर्भर करते हुए बैकअप किसी नजदीकी और सुरक्षित स्थान (जैसे शॉपिंग मॉल/पेट्रोल स्टेशन) पर इंतजार कर सकती है.
  • ग्राउंड पर जाने से पहले सुनियोजित ढंग से तैयारी करें. इलाके की भौगोलिक स्थिति के बारे में जानकारी हासिल करें और उसी के अनुसार योजना बनाएं.
  • अगर खतरा ज़्यादा हो तो सिक्योरिटी की जरूरत पर ग़ौर करें.
  • जब काम पर आपका ध्यान केंद्रित हो तो ऐसे में आप और आपके सामान की सुरक्षा के लिए किसी स्थानीय व्यक्ति की सेवाएं हासिल करें जो आप और आपके सामान पर नजर रखते हुए संभावित खतरों से निपटने में सहायता कर सकता है.
  • अपनी गाड़ी को चलने के लिए तैयार रखें. बेहतर यह होगा कि ड्राइवर गाड़ी में ही मौजूद रहे.
  • अगर आपको ऐसे दूर-दराज़ इलाकों में जाना हो जहां आवागमन के साधन उपलब्ध न हों तो वापसी का तरीका मालूम कर लें. रास्तों में आने वाले विशेष स्थानों की निशानदेही करें और अपने साथियों के साथ भी इस जानकारी को शेयर कर लें.
  • यह तय कर लें कि मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में कहां जाना है और बाहर निकलने की रणनीति भी पहले से तैयार रखें.
  • किसी व्यक्ति की वीडियो बनाने या फोटो खींचने से पहले उसकी मर्ज़ी जानना आमतौर पर समझदारी भरा कदम माना जाता है, विशेष तौर पर उस समय जब आपके पास आसानी से बाहर निकलने का रास्ता न हो.
  • जब आपको आवश्यक सामग्री प्राप्त हो चुकी हो तो वापस आ जाएं और ज़रूरत से ज़्यादा समय वहां न गुजारें. कार्य की पूर्ति के समय को तय करना और तयशुदा समय पर पूरा करके बाहर निकल जाना ज़्यादा बेहतर और उचित होता है. अगर टीम के किसी सदस्य को परेशानी का सामना हो तो बेमतलब बहस करने में समय बर्बाद न करें और वहां से निकल जाएं.
  • कंटेंट या सामग्री को प्रसारित करने या प्रकाशित करने से पहले इस बात को ध्यान में रखें कि आपको उस स्थान पर वापस जाने की जरूरत पड़ सकती है. यह सोच लें कि इस कवरेज के कारण आपका अगली बार वहां जाना प्रभावित तो नहीं होगा?

मानसिक सुरक्षा: न्यूज़रूम में ट्रॉमा की समस्या को कैसे हल करें?

ऐसी न्यूज़ रिपोर्ट और ऐसे हालात जो सदमे का कारण बनते हैं और जिसकी वजह से आपको उस सदमे के प्रभाव के बारे में सोचना चाहिए, निम्नलिखित हैं:

  • हिंसा की घटनाओं की ग्राफिक इमेज (मौत एवं अपराध के दृश्य)
  • बड़े पैमाने के हादसे या आपदाएं (हवाई जहाज़, ट्रेन या कार दुर्घटनाएं)
  • बदसलूकी के मामले खासतौर पर जिसमें बच्चे या बड़े शामिल हों
  • कोई भी समस्या उत्पन्न करने वाली कहानी या न्यूज़ स्टोरी जिसका आपके स्टाफ से व्यक्तिगत संबंध हो
  • जब आपका कोई अनुभवी स्टाफ पहली बार इस तरह की सामग्री, कंटेंट या इस तरह के हालात का सामना कर रहा हो तो

मैनेजमेंट को चाहिए कि ऐसे दिनों में अपने स्टाफ का मार्गदर्शन करे और देखभाल की जिम्मेदारी खुद पर भी महसूस करे. इस हवाले से निम्नलिखित बिंदुओं पर ग़ौर किया जाना चाहिए और अगर ज़रूरत हो तो उस पर अमल भी करना चाहिए. इन दिशा निर्देशों पर अमल करने का फैसला ज़्यादातर न्यूज़ स्टोरी या रिपोर्ट और हालात की तीव्रता पर निर्भर होता है.

  • असाइनमेंट्स को बारी-बारी टीम के अन्य लोगों के बीच बांटते रहें ताकि एक ही प्रोड्यूसर को इस तरह के मुश्किल या कठिन विषयों पर आधारित फुटेज की लंबे समय तक एडिटिंग न करनी पड़े.
  • इस बात को सुनिश्चित करें कि टीम के सदस्य इस बात को महसूस करते हों कि जब किसी विषय से व्यक्तिगत स्तर पर उन्हें असुविधा हो रही हो तो वह उस कार्य को करने से इंकार कर सकते हैं.
  • स्टाफ को इस तरह के कठिन विषयों से निपटने के दौरान अपनी चिंताएं और अपनी बातों को सामने रखने में कोई झिझक नहीं महसूस होनी चाहिए. मैनेजमेंट को चाहिए कि इस मामले को गंभीरता और समझदारी के साथ अतिरिक्त प्रश्न पूछे बिना हल करें. यह मैनेजमेंट के ज़रिए अपने स्टाफ को एक महत्वपूर्ण और विशेष प्रकार की रिआयत दिए जाने का प्रमाण है.
  • इस बात को सुनिश्चित करें कि आपकी टीम के सदस्य एडिटिंग के दौरान ब्रेक ले रहे हैं और इस तरह के कठिन विषय पर काम करते समय उन्हें ताजा हवा हासिल करने के मौक़े उपलब्ध हैं. उन लोगों से पूछते रहें कि क्या वह ठीक हैं और यह केवल टेक्स्ट मैसेज के द्वारा नहीं, बल्कि दिन में कम से कम एक या दो बार अपने स्टाफ के पास जाकर बात करें ताकि हर एक सदस्य को मालूम हो सके कि आप बातचीत के लिए उपलब्ध हैं. ऐसे मामलों पर स्टाफ के बीच आपस में बातचीत की प्रक्रिया को प्रेरित करना चाहिए.
  • अगर आपकी टीम इस तरह के मामलों में पहले शामिल नहीं रही है तो विशेष तौर पर इस तरह के कठिन हालात में अपनी उदारता का सुबूत पेश करते हुए टीम की सहायता के लिए कोई अतीरिक्त स्टाफ मुहैया करें.
  • इस तरह के कठिन समय में हर व्यक्ति के काम के पूरा होने से पहले बातचीत का एक सत्र आयोजित हो.
  • एक जिम्मेदार मैनेजर को इस सत्र के दौरान यह बात ज़ाहिर करनी चाहिए कि लोग इस तरह की न्यूज़ स्टोरी से मानसिक तनाव का शिकार हो सकते हैं और थोड़े समय के लिए इस तरह की भावनाओं का उत्पन्न होना सामान्य और प्रकृति के अनुरूप है. अगर स्टाफ प्रभावित है तो वह अपने किसी मैनेजर से बात करें. अपने साथियों से बातचीत करना भी सहायक सिद्ध हो सकता है.
  • अगर स्टाफ किसी भरोसेमंद और निष्पक्ष सलाहकार से बात करना चाहते हों तो कोई Employment Assistance Program या ऐसा कोई सलाहकार उप्लब्ध है जिससे वह बात कर सकता हो?

मानसिक सुरक्षा: ट्रॉमा से संबंधित तनाव से कैसे निपटें?

ट्रॉमा के बाद जन्म लेने वाले तनाव (Post-tramatic stress disorder) को निरंतर बढ़ रही एक समस्या के तौर पर देखा जाता रहा है जिसका सामना उन पत्रकारों को करना पड़ता है जो तनाव से संबंधित घटनाओ की रिपोर्टिंग करते हैं.

यह समस्या उन मीडिया कर्मियों के साथ ज़्यादा होती है जो विवादित इलाकों में जाकर रिपोर्टिंग करते हैं या जब वह मौत या किसी ख़तरनाक स्थिति को बेहद करीब से देखते हैं. इसलिए यह बात आम तौर पर मानी जाती है कि वह पत्रकार जिन्हें इस प्रकार की कठिन या परेशान करने वाली न्यूज़ स्टोरीज का सामना करना पड़ता हो, पीटीएसबी अर्थात ट्रॉमा के बाद जन्म लेने वाले तनाव की स्थिति के अनुभव से गुजर सकते हैं. बदसलूकी या हिंसा से संबंधित न्यूज़ स्टोरी, अपराध, फौजदारी अदालत से संबंधित मुकदमे, डकैती की घटनाएं. ऐसी स्टोरीज़ जिनमें बड़े पैमाने पर जान का नुकसान हो, कार के हादसे, कोयले की खान का गिरना, इस तरह की घटनाओं की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों में तनाव की स्थिति पैदा होने की संभावनाएं मौजूद होती हैं. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बदसलूकी या ट्रोल का शिकार होने वाले लोग भी इस तरह के ट्रॉमा या तनाव की चपेट में होते हैं.

इंटरनेट पर लोगों के द्वारा बिना सेंसर किए मैटेरियल के बढ़ते रुझान ने एक नई डिजिटल फ्रंटलाइन को जन्म दिया है. अब यह माना जाता है कि मौत और दिल दहला देने वाले दृश्यों को देखने वाले पत्रकार और एडिटर तनाव की चपेट में होते हैं. इस अछूते या विभिन्न प्रकार के ट्रामा को दूसरों से प्राप्त एक विशेष घातक ट्रामा के तौर पर जाना जाता है.

सभी पत्रकारों के लिए यह समझना ज़रूरी है कि डरावनी घटनाएं या फुटेज को देखने के बाद ट्रामा का शिकार होना या तनाव में आ जाना एक प्राकृतिक और सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है. यह किसी प्रकार की कमी या कमजोरी नहीं है.

  • जब भी इस तरह के हालात पैदा हों तो इस हवाले से बातचीत करें. सीनियर मैनेजमेंट से लेकर सबसे जूनियर प्रोड्यूसर तक, हर व्यक्ति खतरनाक घटनाओं, ग्राफिक फुटेज या कठिन स्थितियों से निपटने के दौरान प्रभावित होता है. इसलिए ऐसी अवस्था का सामना हो तो अपने मैनेजर से या किसी दूसरे सुपरवाइज़र से बात करें. उस व्यक्ति से बात करें जिसके पास काम के दौरान आप बैठते हैं. ख़ामोश रहकर ख़ामोशी को खुद के शिकार का मौका न दें.
  • याद रहे कि वीडियोज़ पर काम करते समय, किसी विशेष स्टोरी या ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान ब्रेक लेने की आवश्यकता को जाहिर करना किसी भी तरह से आपके पेशेवर जीवन को या करियर को प्रभावित नहीं करता है.
  • सोने से पहले ग्राफिक फुटेज को न देखें. खबरों या समाचार के हवाले से गुज़रे किसी मुश्किल दिन के बाद, अधिक मात्रा में नशे वाली वस्तुओं का सेवन न करें. खराब नींद आपकी तबीयत के बहाल होने की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकती है.
  • स्वस्थ आहार का सेवन करने और खूब अच्छी तरह से पानी पीते रहने के साथ-साथ व्यायाम और मेडिटेशन इस संबंध में आपकी सहायता कर सकते हैं.
  • याद रखें कि वीडियो के ग्राफिक ऐसे नहीं होने चाहिए कि वह तनाव और परेशानी का कारण बने. खून या हिंसा से संबंधित फुटेज में विशेष तौर पर सतर्क रहने की जरूरत होती है. इसके अलावा विशेष भावनात्मक घटनाओं और मौखिक रूप से की गई बदसलूकी की वीडियोज़ में भी प्रभावित करने की संभावित क्षमता मौजूद होती है. विभिन्न लोगों के लिए विभिन्न चीजें परेशान करने वाली और तकलीफ देने वाली होती हैं. इसलिए इस संबंध में सावधान और संवेदनशील रहने की ज़रूरत है.
  • चाहे एडिटिंग हो या ग्राउंड रिपोर्टिंग, अगर आप पूरे हफ्ते के दौरान बल्कि साप्ताहिक छुट्टी के दिनों में भी और आवश्यक समय से ज़्यादा काम करते रहे हैं तो अपनी विशेष विशेष छूट वाली या प्रिविलेज या कॉम्प डेज़ (Comp Days) ज़रूर ले लें. उनमें से कुछ छुट्टियां जल्द से जल्द ले लें क्योंकि आपकी सेहत के बहाल होने के लिए आपको यह समय गुज़ारना ज़रूरी है.

एडिटिंग प्रोड्यूसरों के लिए

  • वीडियोज़ को आवश्यकता से अधिक न देखें. ऐसा न सोचें कि इस तरह की परेशान करने वाली फुटेज देखकर आपको खुद को साबित करने की ज़रूरत है. फुटेज की एडिटिंग की विधि या तरीके के बारे में आरंभ में ही अपने सुपरवाइज़र या मैनेजर से बातचीत कर लें ताकि आपको फुटेज की एडिटिंग और कटिंग के लिए उसे बार-बार देखने की ज़रूरत न पड़े.
  • जब अपने सुपरवाइज़र, मैनेजर या लीगल टीम के किसी सदस्य को कोई विशेष ग्राफिक, परेशान करने वाली या परेशानी में डालने वाली वीडियो दिखानी हो तो हमेशा उन्हें बता दें या चेतावनी दे दें कि फुटेज में क्या है. इसके बजाय कि क्या आप मेरा वीडियो देख सकते हैं, इस तरह पूछें कि क्या आपको हिंसक हमले के तुरंत बाद की वीडियो देखने में कोई दिक्कत तो नहीं है. याद रहे कि अगर आपको मालूम न हो कि फुटेज में आगे क्या होने वाला है तो ऐसी फुटेज अक्सर ज़्यादा परेशानी में डालने वाली होती हैं.
  • एक टाइम टेबल और रूटीन तैयार कर लें. कुछ इस तरह कि दोनों पैरों को मज़बूती से ज़मीन पर रखें. विशेष तौर पर कठिन और परेशानी में डालने वाली फुटेज देखने से पहले सामान्य से ज़्यादा गहरी सांसें लें और इसके अलावा स्ट्रैचिंग करना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है. इस प्रकार का कोई एक ऐसा रूटीन तैयार करें जो आप और आपकी सेहत के लिए उचित हो.
  • अगर आपको कोई ऐसा प्रोजेक्ट दिया गया है जिसके लिए रोजाना कठिन और परेशानी में डालने वाली फुटेज देखने की जरूरत होती है तो उसके बारे में बात करें कि इस फुटेज का आप पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसको जानने का प्रयास करें. उस प्रोजेक्ट के दौरान आप खुद का ध्यान रख पा रहे हैं या नहीं इस हवाले से भी ग़ौर करें.

ग्राउंड पर मौजूद प्रोड्यूसरों के लिए

  • याद रखें कि खुद के अन्दर बेबसी या परेशानी का एहसास पैदा होना बिल्कुल सामान्य है. क्योंकि परेशानी में डालने वाली या परेशान करने वाली स्टोरीज की कवरेज करते समय इस अवस्था से बचने के लिए आप कुछ खास नहीं कर सकते. बस अपने साथियों के सामने इस बात को जाहिर करें कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं. या उन लोगों से ज़िक्र करें जिनके साथ बात करके आप बेहतर महसूस करते हों. इस अवस्था से बचने के बजाय इसके बारे में बातचीत करना अक्सर ज़्यादा बेहतर होता है

अगर स्तिथि ज़्यादा असामान्य हो तो क्या करें?

  • हमेशा के मुक़ाबले कुछ अलग महसूस करना, बेचैनी या परेशानी का एहसास होना या किसी उदासीन घटना के तत्काल बाद दिमाग में उन परेशान करने वाली तस्वीरों का उभरना आम बात है. इस बात का बाकायदा एहसास होना चाहिए कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं. इस अवस्था के दौरान काम से थोड़ी देर के लिए रुक जाना या छोटा सा ब्रेक लेना फायदेमंद होता है
  • अगर इस तरह की घटनाओं के बाद कई दिनों और हफ्तों तक उन घटनाओं का एहसास आपके दिलो-दिमाग पर सवार है और आप उसे भूल नहीं पा रहे हैं तो अपने सीनियर साथियों से मदद लें. यह आपके लिए ज़्यादा फायदेमंद हो सकता है. ऐसा करने से आप ख़ास तौर पर अच्छा महसूस करेंगे. इसलिए इस संबंध में जितनी जल्दी हो सके मदद लेना बेहतर है.